महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 311 श्लोक 1-15

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एकादशाधिकत्रिततम (311) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: एकादशाधिकत्रिततम अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद

अव्‍यक्‍त, महतत्‍व, अहंकार, मन और विषयों की काल संख्‍या का एवं सृष्टि का वर्णन तथा इन्द्रियों में मन की प्रधानता का प्रतिपादन   याज्ञवल्‍क्‍यजी कहते हैं— नरश्रेष्‍ठ ! अब तुम मुझसे अव्‍यक्‍त की काल-संख्‍या सुनो । दस हजार कल्‍पों का (महायुगों का) इस अव्‍यक्‍त का एक दिन बताया जाता है। नरेश्‍वर ! उसकी रात्रि भी उतनी ही बड़़ी होती है । ज्ञानस्‍वरूप पर ब्रह्मा परमात्‍मा पहले समस्‍त प्राणियों के जीवन-निर्वाह के लिये ओषधि (नाना प्रकार के अन्‍न) की सृष्टि करते हैं। हमने सुना है कि परमात्‍मा ने ओषधियों की सृष्टि के बाद ब्रह्माजी की सृष्टि की थी, जो सुवर्णमय अण्‍डक के भीतर से प्रकट हुए थे। वे ही सम्‍पूर्ण भूतों के उद्गमस्‍थान हैं। वे महामुनि प्रजापति ब्रह्मा उस सुवर्णमय अण्‍ड के भीतर एक वर्ष तक निवास करके उससे बाहर निकल आये । फिर उन्‍होंने सम्‍पूर्ण पृथ्‍वी, आकाश और ऊर्ध्‍वलोक (स्‍वर्ग) की सृष्टि के लिये विचार आरम्‍भ किया। राजन् ! शक्तिशाली ब्रह्मा जी ने उस अण्‍ड के दोनों टुकड़ों के एवं स्‍वर्ग तथा भूतल के मध्‍यभाग में आकश की सृष्टि की । यह बात वेदों में कही गयी है। वेदों और वेदांगों के पारंगत विद्वान् ब्रह्माजी की भी कालसंख्‍या का विचार करते हुए कहते हैं कि दस हजार कल्‍पोंमें से एक चौथाई कम कर देने पर जितना शेष रहता है, उतना ही ब्रह्माजी के एक दिन का मान है अर्थात् साढे़ सात हजार कल्‍पों का उनका एक दिन होता है।अध्‍यात्‍मतत्‍वों का चिन्‍तन करने वाले विद्वानों का कथन है कि ब्रह्माजी की रात्रि भी इतनी ही बड़ी है । महान् ॠषि ब्रह्मा अहंकार नामक दिव्‍य भूत की सृष्टि करते हैं। नृपश्रेष्‍ठ ! महान् ॠषि ब्रह्मा ने पूर्वकाल में भौतिक देह की उत्‍पत्ति से पहले चार अन्‍य पुत्रों को उत्‍पन्‍न किया (जिनके नाम ये हैं- बुद्धि, अंहकार, मन और चित्‍त) । वे चारों पुत्र ‘पितरों के भी पितर’ अर्थात् पंचमहाभूतों के भी जनक सुने जाते हैं। नरश्रेष्‍ठ ! देवता (श्रोत्र आदि इन्द्रियाँ) पितरों (पंचमहाभूतों) के पुत्र हैं अर्थात् सारी इन्द्रियाँ पंचमहाभूतों से ही उत्‍पन्‍न हुई हैं और वे समस्‍त चराचर जगत् का आश्रय लेकर स्थित हैं, ऐसा हमने सुना है। स्‍त्रष्‍टा के उत्‍तम पद पर प्रतिष्ठित हुआ अहंकार आकाश, वायु, तेज, जल, और पृथ्‍वी– इन पाँच प्रकार के भूतों की सृष्टि करता है। इस तृतीय भौतिक सर्ग की सृष्टि करने वाले अहंकार की रात्रि पाँच हजार कल्‍पों की होती है । उसका दिन भी उतना ही बड़ा बताया जाता है। राजेन्‍द्र ! आकाश आदि पाँच महाभूतों में क्रमश: शब्‍द, स्‍पर्श, रूप, रस और गन्‍ध- ये विशेष गुण हैं। पृथ्‍वीनाथ ! प्रवाहरूप से सदा विद्यमान रहने वाले इन मनोहर शब्‍द आदि विषयों से आविष्‍ट होकर सभी प्राणी प्रतिदिन कभी एक-दूसरे को चाहते हैं, कभी पारस्‍परिक हितसाधन में तत्‍पर रहते हैं, कभी एक-दूसरे को नीचा दिखाने की चेष्‍टा करते हैं, कभी आपस में ईर्ष्‍या रखते हैं और कभी परस्‍पर प्रहार भी कर बैठते हैं। ऐसे विषयासक्‍त प्राणी तिर्यग्‍योनियों में प्रवेश करके इसी संसार में चक्‍कर काटते रहते हैं । इन शब्‍दादि विषयों का एक दिन तीन हजार कल्‍पों का बताया जाता है। नरेश्‍वर ! इनकी रात भी इतनी ही बड़ी है। मन के भी दिन-रात का परिमाण इतना ही है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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