महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 311 श्लोक 16-21
एकादशाधिकत्रिततम (311) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: एकादशाधिकत्रिततम अध्याय: श्लोक 16-21 का हिन्दी अनुवाद
राजेन्द्र ! मन इन्द्रियों द्वारा संचालित होकर सब विषयों की ओर जाता है। इन्द्रियाँ उन विषयों को नहीं देखतीं, मन उन्हें निरन्तर देखता है। आँख मन के सहयोग से ही रूप का दर्शन करती है, अपनी शक्ति से नहीं। जिस समय मन व्यग्र रहता है, उस समय आँख देखती हुई भी नहीं देख पाती। लोग भ्रमवश ही ऐसा कहते हैं कि सम्पूर्ण इन्द्रियाँ विषयों को प्रत्यक्ष करती हैं। किंतु इन्द्रियाँ कुछ नहीं देखतीं, केवल मन ही देखता है। राजन् ! मन विषयों से उपरत हो जाय तो इन्द्रियाँ भी विषयों से निवृत्त हो जाती हैं । परंतु इन्द्रियों के उपरत होने पर मन में उपरति नहीं आती। इस प्रकार यह निश्चय करना चाहिये कि सम्पूर्ण इन्द्रियों में मन ही प्रधान है। मन को सम्पूर्ण इन्द्रियों का स्वामी कहा जाता है । महायशस्वी नरेश ! जगत् के समस्त प्राणी इस मन का ही आश्रय लेते हैं।
इस प्रकार श्री महाभारत शान्ति पर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्म पर्व याज्ञवल्क्य जनक का संवाद विषयक तीन सौ ग्यारहवाँ अध्याय पूरा हुआ।
« पीछे | आगे » |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।