महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 313 श्लोक 1-28
त्रयोदशाधिकत्रिशततम (313) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
अध्यात्म, अधिभूत और अधि दैवत का वर्णन तथा सात्विक, राजस और तामस भावों के लक्षण
याज्ञवल्क्यजी कहते हैं — राजन् ! तत्वदर्शी ब्राह्मामणों का कथन है कि दोनों पैर अध्यात्म हैं, गन्तव्य स्थान अधिभूत हैं और विष्णु अधिदैवत हैं। तत्वार्थदर्शी विद्वान् गुदा को अध्यात्म कहते हैं। मलत्याग अधिभूत है और मित्र अधिदैवत हैं। योगमत का प्रदर्शन करने वाले जैसा कहते है, उसके अनुसार उपस्थ अध्यात्म है, मैथुनजनित आनन्द अधिभूत है और प्रजापति अधिदैवत हैं। सांख्यदर्शी विद्वानों के कथनानुसार दोनों हाथ अध्यात्म हैं, कर्तव्य अधिभूत है और इन्द्र अधिदैवत हैं। वेदार्थ पर विचार करने वाले विद्वान् जैसा कहते हैं, उसके अनुसार वाक् अध्यात्म है, वक्तव्य अधिभूत है और अग्नि अधिदैवत हैं। वेददर्शी विद्वान् जैसा बताते हैं, उसके अनुसार नेत्र अध्यात्म है, रूप अधिभूत है और सूर्य अधिदैवत हैं। वैदिक सिद्धान्त का ज्ञान रखने वाले विद्वान् पुरूष कहते हैं कि श्रोत्र अध्यात्म है, शब्द अधिभूत है, और दिशाएँ अधिदैवत हैं । वेद के अनुसार दृष्टि रखने वाले विद्वानों का कथन है कि जिह्वा अध्यात्म है, रस अधिभूत है और जल अधिदैवत है। वैदिक मत के अनुसार यथार्थ तत्व का ज्ञान रखने वाले विद्वान् कहते हैं कि नासिका अध्यात्म है, गन्ध अधिभूत है और पृथ्वी अधिदैवत है। तत्वज्ञान में कुशल पुरूषों का कथन है कि त्वचा अध्यात्म है, स्पर्श अधिभूत है और वायु अधिदैवत है। शास्त्रज्ञान निपुण विद्वान् कहते हैं कि मन अध्यात्म है, मन्तव्य अधिभूत है और चन्द्रमा अधिदेवता हैं। तत्वदर्शी पुरूषों का कथन है कि अहंकार अध्यात्म है, अभिमान अधिभूत है और रूद्र अधिदेवता हैं। यथार्थ ज्ञानी पुरूष कहते हैं कि बुद्धि अध्यात्म है, बोद्धव्य अधिभूत है और आत्मा अधिदेवता है। तत्वज्ञ नरेश ! यह मैंने तुम्हारे निकट आदि, मध्य और अन्त में तत्वत: प्रकाशित होने वाली जीव की व्यक्तिगत विभूति का वर्णन किया है । महाराज ! प्रकृति स्वतन्त्रतापूर्वक खेल करने के लिये अपनी ही इच्छा से सैकड़ों और हजारों गुणों को उत्पन्न करती है। जैसे मनुष्य एक दीपक से हजारों दीपक जला लेते हैं, उसी प्रकार प्रकृति पुरूष के सम्बन्ध से अनेक गुण उत्पन्न कर देती है। धैर्य, आनन्द , प्रीति, उत्कर्ष, प्रकाश (ज्ञानशक्ति), सुख, शुद्धि, आरोग्य, संतोष, श्रद्धा, अकार्पण्य (दीनता का अभाव), असंरम्भ (क्रोध का अभाव), क्षमा, धृति, अहिंसा, समता, सत्य ॠण से रहित होना, मृदुता, लज्जा, अचंचलता, शौच, सरलता, सदाचार, अलोलुपता, हृदय में सम्भ्रम का न होना, इष्ट और अनिष्ट के वियोग का बखान न करना, दान के द्वारा धैर्य धारण करना, किसी वस्तु की इच्छा न करना, परोपकार और सम्पूर्ण प्राणियों पर दया—ये सब सत्तव सम्बन्धी गुण बताये गये हैं। रूप, ऐश्वर्य, विग्रह, त्याग का अभाव, करूणा का अभाव, दु:ख-सुख का उपभोग, परनिन्दा में प्रीति, वाद-विवाद करना, अहंकार माननीय पुरूषों का सत्कार न करना, चिन्ता, वैरभाव रखना, संताप करना, दूसरों का धन हड़प लेना, निर्लज्जता, कुटिलता, भेदबुद्धि कठोरता, काम, क्रोध, मद,दर्प, द्वेष और बहुत बोलने का स्वभाव— यह रजोगुण का समूह है। ये सारे भाव रजो गुण के कार्य बताये गये हैं। अब मैं तामस भावों के समूह का परिचय देता हूँ ध्यान देकर सुनो। मोह, अप्रकाश (अज्ञान), तामिस्त्र और अन्धतामिस्त्र— ये सब तमोगुण के लक्षण हैं। इनमें तामिस्त्र क्रोध का वाचक है और अन्धतामिस्त्र मरण का। भोजन में रूचि का न होना, खाने की वस्तुओं से तृप्ति या संतोष का अभाव अथवा कितना ही भोजन क्यों न मिले, उसे पर्याप्त न मानना, पीने की वस्तुओं से कभी तृप्त न होना, दुर्गन्धयुक्त वस्त्र, अनुचित विहार, मलिन शय्या और आसनों का सेवन, दिन में सोना, अत्यन्त वाद-विवाद में और प्रमाद में अत्यन्त आसक्त रहना, अज्ञानवश नाच-गीत और नाना प्रकार के बाजों में श्रद्धा, नाना प्रकार के धर्मों से द्वेष—ये तमोगुण के लक्षण हैं।
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