श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 3 श्लोक 51-53

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १२:२५, ३१ जुलाई २०१५ का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

दशम स्कन्ध: तृतीय अध्याय (पूर्वार्ध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: तृतीय अध्याय: श्लोक 51-53 का हिन्दी अनुवाद

वसुदेव जी ने नन्दबाबा के गोकुल में जाकर देखा कि सब-के-सब गोप नींद में अचेत पड़े हुए हैं। उन्होंने अपने पुत्र को यशोदा जी की शैय्या पर सुला दिया और उनकी नवजात कन्या लेकर वे बंदीगृह में लौट आये। जेल में पहुँचकर वसुदेव जी ने उस कन्या को देवकी की शैय्या पर सुला दिया और अपने पैरों में बेड़ियाँ डाल लीं तथा पहले की तरह वे बंदीगृह में बंद हो गये। उधर नन्दपत्नी यशोदा जी को इतना तो मालूम हुआ कि कोई सन्तान हुई है, परन्तु वे यह न जान सकीं कि पुत्र है या पुत्री। क्योंकि एक तो उन्हें बड़ा परिश्रम हुआ था और दूसरे योगमाया ने उन्हें अचेत कर दिया था[१]



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भगवान श्रीकृष्ण ने इस प्रसंग में यह प्रकट किया कि जो मुझे प्रेमपूर्वक अपने हृदय में धारण करता है, उसके बन्धन खुल जाते हैं, जेल से छुटकारा मिल जाता है, बड़े-बड़े फाटक टूट जाते हैं, पहरेदारों को पता नहीं चलता, भव-नदी का जल सूख जाता है, गोकुल (इन्द्रिय-समुदाय) की वृत्तियाँ लुप्त हो जाती हैं और माया हाथ में आ जाती है।

संबंधित लेख

-