महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 298 श्लोक 42-47
अष्अनवत्यधिकद्विशततम (298) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
जो दृढ निश्चय एवं पूर्ण उद्योग का सहारा ले तदनुकूल सहायकों का संग्रह करता है, उसका कोई भी कार्य कभी भी व्यर्थ नहीं होता । जिसके मन में दुविधा नहीं होती, जो उद्योगी, शूरवीर, धीर और विद्वान होता है, उसे सम्पत्ति उसी तरह कभी नहीं छोड़ती, जैसे किरणें सूर्य को । जिसका हृदय उदार एवं प्रशस्त है, जो आस्तिक भाव, निश्चय एवं आवश्यक उपाय से गर्वहीनता के साथ उत्तम बुद्धिपूर्वक कार्य आरम्भ करता है, उसका वह कार्य कभी असफल नहीं होता । सभी जीव, पूर्वजन्म में उन्होंने जो कुछ किया है, उन अपने शुभाशुभ कर्मों के नियत फलों को गर्भ में प्रवेश करने के समय से ही क्रमश: पाने और भोगने लगते हैं। जैसे वायु आरे से चीरकर बनाये गये लकड़ी के चूरे को उड़ा देती है, उसी प्रकार कभी टाली न जा सकने वाली मृत्यु विनाशकारी काल की सहायता से मनुष्य का अन्त कर देती है । सब मनुष्य अपने किये हुए शुभाशुभ कर्म के अनुसार ही सुन्दर या असुन्दर रूप, अपने से होने वाले योग्य-अयोग्य पुत्र-पौत्र आदि का विस्तार, उत्तम या अधम कुल में जन्म तथा द्रव्य-समृद्धि का संचय आदि पाते हैं । भीष्म जी कहते हैं - राजन् ! ज्ञानी महात्मा पराशर मुनि के मुख से इस यथार्थ उपदेश को सुनकर धर्मज्ञों में श्रेष्ठ राजा जनक बहुत प्रसन्न हुए ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्मपर्व में पराशरगीताविषयक दोसौ अट्ठानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ ।
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