महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 321 श्लोक 29-42
विंशत्यधिकत्रिशततम (321) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
परंतु जो गुरूजनों की आज्ञा का उल्लंघन करते हैं, उनके मरण के पश्चात् नरक में स्थित भयानक शरीर वाले कुत्ते, लौहमुख पक्षी, कौए-गीध आदि पक्षियों के समुदाय तथा रक्त पीने वाले कीट उनके यातना-शरीर पर आक्रमण करके उसे नोचते और काटते हैं। जो मनुष्य मनचाही करने के कारण स्वायम्भुवमनु की बाँधी हुई धर्म की दस[१] प्रकार की मर्यादाओं को तोड़ता है, वह पापात्मा पितृलोक के असिपत्रवन में जाकर वहाँ अत्यन्त दु:ख भोगता रहता है। जो पुरूष अत्यन्त लोभी, असत्य से प्रेम करने वाला और सर्वदा कपट भरी बातें बनाने वाला और ठगाई में रत है तथा जो तरह-तरह के साधनों से दूसरों को दु:ख देता है, वह पापात्मा घोर में पड़कर अत्यन्त दु:ख भोगता है। उसे अत्यन्त उष्ण महानदी वैतरणी में गोता लगाना पड़ता है । असिपत्रवन में उसका अंग-अंग छिन्न-भिन्न हो जाता है और परशुवन में उसे शयन करना पड़ता है। इस प्रकार महानरक में पड़कर वह अत्यन्त आतुर हो उठता है और विवश होकर उसी में निवास करता है। तुम ब्रह्मालोक आदि बड़े-बड़े स्थानों की बातें तो बनाते हो, परंतु परमपद पर तुम्हारी दृष्टि नहीं है। भविष्य में जो मृत्यु की परिचारिका वृद्धावस्था आने वाली है, उसका तुम्हें पता ही नहीं है। वत्स ! चुपचाप क्यों बैठे हो ? जल्दी से आगे बढ़ो । तुम्हारे ऊपर हृदय को अत्यन्त मथ डालने वाला, भयंकर एवं महान् भय उठ खड़ा हुआ है; अत: परमानन्द की प्राप्ति के लिये प्रयत्न करो। तुम्हें मरने पर यमराज की आज्ञा से भयानक यमदूतों द्वारा उन्के सामने उपस्थित किया जाय, इसके पहले ही सरलतारूप धर्म के सम्पादन के लिये प्रयत्न करो। यमराज सबके स्वामी हैं । वे किसी का दु:ख-दर्द नहीं समझते हैं । वे मूल और बन्धु -बान्धवोंसहित तुम्हारे प्राण हर लेंगे । उन्हें रोकने वाला कोई नहीं है । वह समय आने के पहले ही तुम अपनी रक्षा के लिये प्रबन्ध कर लो। जिस समय यमराज के आगे-आगे चलने वाला प्रचण्ड कालरूपी पवन चल पड़ेगा, उस समय वह अकेले तुम्हीं को वहाँ ले जायगा; अत: तुम पहले से ही परलोक में सुख देने वाले धर्म का आचरण करो। पूर्वजन्म में तुम्हारे सामने जो प्राणनायक पवन चल रहा था, आज वह कहाँ है ? अब भी जब मृत्युरूप महान् भय उपस्थित होगा, तब तुम्हें सम्पूर्ण दिशाएँ घूमती दिखायी देंगी; अत: पहले से ही सावधान हो जाओ। बेटा ! जब तुम इस शरीर को छोड़कर चलने लगोगे, उस समय व्याकूलता के कारण तुम्हारी श्रवणशक्ति भी नष्ट हो जायेगी । इसलिये तुम सुढृढ़ समाधि प्राप्त कर लो। तुम पहले असावधानता वश जो अनुचितरूप से शुभाशुभ कर्म कर चुके हो, उसे स्मरण करके उनके फलभोग से संतप्त होने के पहले ही अपने लिये केवल ज्ञान का भण्डार भर लो। देखो, बल, अंग और रूप का विनाश करने वाली वृद्धावस्था एक दिन तुम्हारे शरीर को जर्जर कर डालेगी, उसके पहले ही तुम अपने लिये ज्ञान का भण्डार भर लो। रोग जिसका सारथि है, वह काल हठात् तुम्हारे शरीर को विदीर्ण कर डालेगा, इसलिये, इस जीवन का नाश होने से पूर्व ही तुम महान् तप का अनुष्ठान कर लो।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मनु जी ने दस भेद ये बताये हैं —धृति: क्षमा, मनोनिग्रह, पवित्रता, इन्द्रियसंयम, बुद्धि विद्या, सत्य और अक्रोध— ये धर्म के दस लक्षण हैं ।