महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 321 श्लोक 43-57

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एकविंशत्‍यधिकत्रिशततम (321) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: एकविंशत्‍यधिकत्रिशततम अध्‍याय: श्लोक 43-57 का हिन्दी अनुवाद

इस मानव-शरीर में रहने वाले काम-क्रोध आदि भयंकर व्‍याघ्र तुम पर चारों ओर से आक्रमण कर रहे हैं, इसलिये पहले से ही तुम पुण्‍यसंचय के लिये प्रयत्‍न करो। मरने के समय तुम्‍हें, पहले घोर अन्‍धकार दिखलायी देगा । फिर पर्वत के शिखपर सुनहरे वृक्ष दृष्टिगोचर होंगे । वह समय आने से पहले ही अपने कल्‍याण के लिये तुम शीघ्र प्रयत्‍न करो। इस संसार में दुष्‍ट पुरूषों के संग तथा ऊपर से मित्रभाव एवं भीतर से शत्रुता रखने वाले लोग दर्शनमात्र से तुम्‍हें कर्तव्‍यपथ से विचलित कर देंगे, इसलिये तुम पहले से ही परम उत्तम पुण्‍यसंचय के लिये प्रयत्‍न करो। जिसे धन को न तो राजा से भय है और न चोर से ही तथा जो मर जाने पर जीव का साथ नहीं छोड़ता है, उस धर्मरूपी धन का उपार्जन करो। अपने कर्मों के अनुसार प्राप्‍त हुए उस धन को परलोक में परस्‍पर बाँटना नहीं पड़ता है । वहाँ तो जो जिसकी निजी सम्‍पति है, उसे ही वह भोगता है। बेटा ! जिससे परलोक में भी जीवन-निर्वाह हो सकता है तथा जो अविनाशी और अटल धन है, उसी का दान करो एवं उसी का स्‍वयं भी उपार्जन करते रहो। बेटा ! घर पर आये हुए किसी समादरणीय अतिथि के लिये जितनी देर में यावक (घृत और खाँड़ मिलाकर तैयार किया हुआ जौ के आटे का पूआ) पकाया जाता है, उसके पकने से भी पहले तुम्‍हारी मृत्‍यु हो सकती है; अत: तुम ज्ञानरूपी धन के उपार्जन के लिये शीघ्रता करो। जीव जब अकेला ही परलोक के पथ पर प्रस्‍थान करता है, उस संकट के समय माता, पुत्र, भाई-बन्‍धु तथा अन्‍याय प्रशंसित प्रियजन भी उसके साथ नहीं जाते हैं। पुत्र ! परलोक में जाते समय अपना पहले का किया हुआ जो शुभाशुभ कर्म होता है, केवल वही साथ रहता है। मनुष्‍य के द्वारा अच्‍छे-बुरे सभी तरह के कर्म करके जो सुवर्ण और रत्‍नों के ढेर इकठेृ किये जाते हैं, वे सभी उस मनुष्‍य के शरीर का नाश होने पर उसके किसी काम नहीं आते हैं (क्‍योंकि वे सब यहीं रह जाते हैं)। परलोक की यात्रा करते समय तुम्‍हारे किये और न किये हुए कर्म का साक्षी आत्‍मा के समान मनुष्‍यों में दूसरा कोई नहीं है। परलोक में जाते समय इस मनुष्‍य-शरीर का अभाव हो जाता है अर्थात् यह यहीं छूट जाता है । जीव सूक्ष्‍म शरीर से लोकान्‍तर में प्रवेश करके अपने बुद्धिरूपी नेत्र से वहाँ सब कुछ देखता है। इस लोम में अग्नि, वायु और सूर्य— ये तीन देवता जीव के शरीर का आश्रय करके रहते हैं । वे ही उसके धर्माचरण को देखने वाले हैं और वे ही परलोक में उसके साक्षी होते हैं। दिन सब पदार्थो को प्रकाशित करता है और रात्रि उन्‍हें छिपा लेती है। ये सर्वत्र व्‍याप्‍त हैं और सभी वस्‍तुओं का स्‍पर्श करते हैं, अत: तुम इनकी वेला में सर्वदा अपने धर्म का ही पालन करो। परलोक के मार्ग पर बहुत-से लुटेरे और बटमार रहते हैं तथा विकराल एवं भयंकर डाँस एवं मक्खियाँ होती हैं । वहाँ केवल अपना किया हुआ कर्म ही साथ जाता है; अत: तुम्‍हें अपने सत्‍कर्म की ही रक्षा करनी चाहिये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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