महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 324 श्लोक 22-27
चतुर्विंशत्यधिकत्रिशततम (323) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
महाराज ! शुकदेवजी के जन्म लेते ही रहस्य और संग्रहसहित सम्पूर्ण वेद उसी प्रकार उनकी सेवा में उपस्थित हो गये, जैसे वे उनके पिता वेदव्यास की सेवा में उपस्थित हुए थे। महाराज ! वेद-वेदांगो की विस्तृत व्याख्या के ज्ञाता शुकदेवजी ने धर्म का विचार करके बृहस्पति को अपना गुरू बनाया। प्रभो ! महामुनि शुकदेव ने उनसे रहस्य और संग्रहसहित सम्पूर्ण वेदों का, समूचे इतिहास का तथा राजशास्त्र का भी अध्ययन करके गुरू को दक्षिणा दे समार्वतन-संस्कार के पश्चात् घर को प्रस्थान किया। उन्होंने एकाग्रचित्त हो ब्रह्माचर्य का पालन करते हुए उग्र तपस्या प्रारम्भ की । महातपस्वी शुकदेव ज्ञान और तपस्या के द्वारा बाल्यकाल में भी देवताओं तथा ऋषियों के आदरणीय और उन्हें सलाह देने योग्य हो गये थे। नेरश्वर ! वे मोक्षधर्म पर ही दृष्टि रखते थे; अत: उनकी बुद्धि गार्हस्थ आश्रम पर अवलम्बित रहने वाले तीनों आश्रमों में प्रसन्नता का अनुभव नहीं करती थी।
« पीछे | आगे » |