महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 340 श्लोक 59-80

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चत्वरिंशदधिकत्रिशततम (340) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: चत्वरिंशदधिकत्रिशततम अध्याय: श्लोक 59-80 का हिन्दी अनुवाद

देवताओं ! जिसने तो अलग हमारे लिये निश्चित किया था, वह उसी रूप में मुझे प्राप्त हो गया। इससे प्रसन्न होकर आज मैं तुम्हें पुनरावृत्तिरूप फल प्रदान करता हूँ। ‘देवताओं ! मेरी कृपा से तुम्हारा ऐसा ही लक्षण होगा। तुम प्रत्येक युग में उत्तम दक्षिणाओं से संयुक्त यज्ञों द्वारा यजन करके प्रवृत्तिरूप धर्मफल के भागी होआगे। ‘देवगण ! सम्पूर्ण लोकों में जो मनुष्य यज्ञों द्वारा यजन करेंगे, वे तुम्हारे लिये वेद के कथनानुसार यज्ञभाग निश्चित करेंगे। ‘इन महान् यज्ञ में जिस देवता ने मेरे लिये जैसा भाग निश्चित किया है, वह वैदिक सूत्र में मेरे द्वारा वैसे ही यज्ञभाग का अधिकारी बनाया गया। ‘तुम लोग यज्ञ में भाग लेकर यजमान को उसका फल देने में प्रवृत्त हो जगत् में अपने अणिकार के अनुसार सबके सभी मनोरथों का चिन्तन करते हुए सब लोगों को उन्नतिशील बनाओ। ‘प्रवृत्ति-फल से सादृत होने वाली जिन यज्ञ-क्रियाओं का जगत् में प्रचार होगा, उन्हीं से तुम्हारे बल की वृद्धि होगी और बलिष्ठ होकर तुम लोग सम्पूर्ण लोाकों का भरण-पोषण करोगे। ‘सम्पूर्ण यज्ञों में मनुष्य तुम्हारा यजन करके तुम्हें उन्नतिशील एवं पुष्ट बनायेंगे, फिर तुम लोग भी मुझे इसी प्रकार परिपुष्ट करोगे। यही तुम्हारे लिये मेरा उपदेश है। ‘इसी के लिये मैंने वेदों तथा औषधियों (अन्न-फल आदि) सहित यज्ञों की सृष्टि की है। इनका भलीभाँति पृथ्वी पर अनुष्ठान होने से सम्पूर्ण देवता तृप्त होंगे| ‘देवश्रेष्ठगण ! मैंने प्रकृतिप्रधान गुण के सहित तुम लोगों की सृष्टि की है, अतः लोकेश्वरों ! जब तक कल्प का अन्त न हो जाय, तब तक तुम लोग अपने अधिकार के अनुसार लोगों काहित चिन्तन करते रहो।। ‘मरीचि, अंगिरा, अत्रि, पुलत्स्य, पुलह, क्रतु, और वसिष्ठ - ये सात ब्रह्माजी के द्वारा मन से उत्पन्न किये गये हैं। ‘ये प्रधान वेदवेत्ता और प्रवृत्ति-धर्मावलम्बी हैं। इन सबको वेदाचार्य माना गया है और प्रजापति के पद पर प्रतिष्ठित किया गया है। ‘यह कर्मपरायण पुरुषों के लिये सनातन मार्ग प्रकट हुआ है। इस पद्धति से लोकों की सृष्टि करने वाले प्रभावशाली पुरुष को अनिरुद्ध कहा गया है। ‘सन, सनत्सुजात, सनक, सनन्दन, सनत्कुमार, कपिल तथा सातवें सनातन - ये सात ऋषि भी ब्रह्मा के मानस पुत्र कहे गये हैं। इन्हें स्वयं विज्ञान प्राप्त है और ये निवृत्तिधर्म में सिथत हैं। ‘ये प्रमुख योगवेत्ता, सांख्यज्ञान-विशारद, धर्मशास्त्रों के आचार्य तथा मोक्षधर्म के प्रवर्तक हैं। ‘पूर्वकाल में अव्यक्त प्रकृति से जो त्रिगुणात्मक महान् अहंकार प्रकट हुआ था, उससे अत्यन्त परे जिसकी स्थिति है, वह समष्टि चेतन क्षेत्रज्ञ माना गया है। ‘वह क्षेत्रज्ञ मैं हूँ। जो कर्मपरायण मनुष्य हैं, वे पुनरावृत्तिशील हैं; अतः दनके लिये यह निवृत्तिमार्ग दुर्लभ है। जिस प्राणी का जिस प्रकार निर्माण हुआ है तथा वह जिस-जिस प्रवृत्ति या निवृत्तिरूप कर्म में संलग्न होता है, वह उसी के महान् फल का भागी होता है। ‘ये लोकगुरु ब्रह्मा जगत् के आदि स्रष्टा और प्रभु हैं। ये ही तुम्हारे माता-पिता और पितामह हैं। मेरी आज्ञा के अनुसार ये सम्पूर्ण भूतों को वर प्रदान करने वाले होंगे। ‘इनके ललाट से जो रुद्र उत्पन्न हुए हैं, वे भी इन (ब्रह्माजी) के ही पुत्र हैं। ब्रह्माजी की आाा से वे सम्पूर्ण भूतों की रक्षा करने में समर्थ होंगे। ‘तुम लोग जाओ और अपने-अपने अधिकारों का विधिपुर्वक पालन करो। समस्त लोकों में सम्पूर्ण वैदिक क्रियाएँ अविलम्ब प्रचलित हो जानी चाहिये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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