महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 340 श्लोक 101-119

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चत्वरिंशदधिकत्रिशततम (340) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: चत्वरिंशदधिकत्रिशततम अध्याय: श्लोक 101-119 का हिन्दी अनुवाद

शिष्यों तुम उन्हीं अजन्मा, विश्वरूप, सम्पूर्ण देवताओं के आश्रय निर्गुण परमात्मा नारायणदेव को नमसकार करो। वे ही महाभूतों के अधिपति तथा रुद्रों, आदित्यों और वसुओं के स्वामी हैं। उन्हें नमसकार करो। वे अश्विनीकुमारों के पति, मरुद्गणों के पालक, वेद और यज्ञों के अधिपति तथा वेदांगों के भी स्वामी हैं। उन्हें प्रणाम करो। जो सदा समुद्र में निवास करते हैं, जिनका केश मूँज के समान है तथा जो समसत प्राणियों को मोक्षणर्म का उपदेश देते हैं, उन याान्तरूप श्रीहरि को नमस्कार करो। जो तप, तेज, यश, वाणी तथा सरिताओं के स्वामी एवं नित्य संरक्षक हैं, उन श्रीहरि को नमसकार करो। जो जटाजूटधारी, एक सींग वाले वराह, बुद्धिमान विवस्वान्, हाग्रीव तथा चतुर्मुर्तिणारी हैं, उन श्रीनारायणदेव को सदा नमस्कार करो। जिनका स्वरूप गुह्य है, जो ज्ञानरूपी नेत्र से ही देखे जाते हैं तथा अक्षर और क्षररूप हैं, उन श्रीहरि को प्रणाम करो। ये अविनाशी नारायणदेव सर्वत्र संचरण करते हैं; इनकी सर्वत्र गति है। ये ही परब्रह्म हैं। विज्ञानमय नेत्र से ही इनका दर्शन एवं ज्ञान हो सकता है। पूर्वकाल में मैंने ये सारी बातें यथार्थरूप से कही हें। तुम मेरी बात मानो और सर्वेश्वर श्रीहरि का सेवन करो। वेदमन्त्रों द्वारा उन्हीं की महिमा का गान और उन्हीं का विधिपूर्वक पूजन करो।

वैशम्पायनजी कहते हैं - जनमेजय ! परम बुद्धिमान वेदव्यास ने हम सब शिष्यों को तथा अपने परम धर्मज्ञ पुत्र शुकदेव को ऐसा ही उपदेश दिया। प्रजानाथ ! फिर हमारे उपाध्याय व्यास ने हमारे साथ चारों वेदों की ऋचाओं द्वारा उन नारायणदेव का सतवन किया। राजन् ! तुमने मुझसे जो कुछ पूछा था, वह सब मैंने कह सूनाया। पूर्वकाल में मेरे गुरु व्यासजी ने मुझे ऐसा ही उपदेश दिया था। जो प्रतिदिन इसे सुनता है और जो भगवान को नमस्कार करके एकाग्रचित्त हो सदा इसका पाठ करता है, वह बुद्धिमान्, बलवान्, रूपवान् तथारोगरहित होता है। रोगी रोग से और बँधा हुआ पुरुष बन्धन से मुक्त हो जाता है। कामना वाला पुरुष मनोवांछित कामनाओं को पाता है तथा बड़ी भारी आयु प्राप्त कर लेता है। ब्राह्मण सम्पूर्ण वेदों का ज्ञाता और क्षत्रिय विजयी होता है। वैश्य इसको पढ़ने और सुनने से महान् लाभ का भागी होता है। शूद्र सुख पाता है। पुत्रहीन को पुत्र और कन्या को मनोवांछित पति की प्राप्ति होती है। जिसका गर्भ अटक गया हो, वह इसको सुनने से उस संकट से छूट जाती है। गर्भवती स्त्री यथासमय पुत्र पैदा करती है। वन्ध्या भी प्रसव को प्राप्त होती है तथा उसका वह प्रसव पुत्र-पौत्र एवं समृद्धि से सम्पन्न होता है। जो मार्ग में इसका पाठ करता है, वह कुशलतापूर्वक अपनी यात्रा पूरी करता है। इसे पढ़ने और सुनने वाला पुरुष जिस वस्तु की इच्छा करताहै, वह उसे अवश्य प्राप्त कर लेता है। पुरुष प्रवर महात्मा महर्षि व्यास के कहे हुए इस सिद्धान्तभूत वचन को तथा ऋषियों और देवताओं के समागम-सम्बन्धी इस वृत्तान्त को श्रवण करके भक्तजन उत्तम सुख पाते हैं।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शानितपर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्मपर्व में नारायण की महिमा विषयक तीन सौ चालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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