कुंभनदास
- कुंभनदास (1468-1582) पुष्टमार्गी अष्टछाप के प्रमुख कवि और बल्लभाचार्य के शिष्य।
- इनका जन्म गोवर्धन के निकट जमुनावतो ग्राम के एक निर्धन क्षत्रिय कुल में हुआ था।
- खेती इनका धंधा था।
- 14९2 इ. में पुष्टिमार्ग में दीक्षित हुए और श्रीनाथ जी के मंदिर में कीर्तनकार के रूप में नियुक्त हुए।
- इस पद पर नियुक्त होने के बाद भी वे अपना जीविकापोर्जन खेती से ही करते रहे।
- निर्धनता सहन करते रहे पर कभी किसी का दान स्वीकार नहीं किया।
- कहते हैं कि एक बार राजा मानसिंह ने इन्हें सोने की आरसी और एक हजार मोहरों की थैली भेंट करना चाहा पर उन्होंने उसे अस्वीकार कर दिया।
- जमुनावतो गाँव की माफी भी इन्हें दी जा रही थी पर उन्होंने नहीं लिया।
- अपनी खेती के अन्न, करील के फूल, र्टेटी और झड़बेरों से ही संतुष्ट रहकर श्रीनाथ जी की सेवा करते रहे।
- इन्हें निकुंज लीला का रस अर्थात् मधुरभाव की भक्ति प्रिय थी।
- इनके रचे गए लगभग 5०० पद उपलब्ध है जिनमें आठ पहर की सेवा तथा वर्षोत्सवों के लिये रचे गए पद ही अधिक है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ