महाभारत वन पर्व अध्याय 267 श्लोक 19-21

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सप्‍तषष्‍टयधिकद्विशततम (267) अध्‍याय: वन पर्व ( द्रौपदीहरण पर्व )

महाभारत: वन पर्व: सप्‍तषष्‍टयधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 19-21 का हिन्दी अनुवाद
जयद्रथ और द्रौपदीका संवाद


उसके इस प्रस्‍तावका निरस्‍कार करके सुन्‍दरी द्रौपदीने उसे कडी फटकार सुनायी और बोली –‘ खबरदार, फिॅर कभी ऐसी बात मुखसे मत निकालना । सिन्‍धुराज ! तुम्‍हें लज्‍जा आनी चाहिये थी । पतिव्रता द्रौपदी चाहती थी किे मेरे पति अभी यहां आ जायँ । अत: वह जयद्रथ से वाद-विवाद करती हुई उसे बातोंमें फसाये रखनेकी चेष्‍टा करने लगी । द्रौपदी बोली–महाबाहो ! ऐसी आपकी बात न बोलो । कौन-सा कार्य धर्मके अनुकूल और न्‍यायसंगत है, इसका तुम्‍हें ज्ञान नहीं है । तुम धृतराष्‍ट्रपुत्रों तथा पाण्‍डवोंकी छोटी बहन दु:शलाके पति हो । महारथी राजकुमार ! इस नातेसे न्‍यायत: तुम मेरे भाई हो; अत: तुम्‍हें मेरी रक्षा करनी चाहिये । तुम्‍हारा जन्‍म तो धर्मात्‍माओंके कुलमें हुआ है, परंतु तुम्‍हारी दृष्टि धर्मकी ओर नहीं है । वैशम्‍पायनजी कहते हैं– द्रौपदीके ऐसा कहनेपर सिन्‍धुराज जयद्रथने उसे इस प्रकार उत्‍तर दिया । जयद्रथ बोला –कृष्‍णे ! तुम राजाओेंका धर्म नहीं जानतीं । मनीषी पुरूषोंका कथन है कि इस संसारमें स्त्रियां तथा रत्‍न सर्वसाधारणकी वस्‍तुएँ हैं ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्वके अन्‍तर्गत द्रैपदीहरणपर्वमें जयद्रथद्रौपदीसंवादविषयक दो सौ सरसठवाँ अध्‍याय पूरा हुआ ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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