महाभारत विराट पर्व अध्याय 22 श्लोक 86-94
द्वाविंश (22) अध्याय: विराट पर्व (कीचकवध पर्व)
फिर वहाँ आग जलाकर उन्होंने कीचक का शव दिखाया। उस सूय वीरवर भीम ने पान्चाली से यह बात कही- ‘सुन्दर केशों वाली भीरु पान्चाली ! तुम सुशील और सद्गुणों से सम्पन्न हो। जो दुष्ट तुमसे समागम की याचना करेंगे, वे इसी प्रकार मारे जायँगे। जैसे आज कीचक शोभा पाता है, वही दशा उनकी भी होगी’। द्रौपदी को प्रिय लगन वाले इस उत्तम एवं दुष्कर कर्म को करके ऊपर बताये अनुसार कीचक को मारकर अपना रोष शान्त करने के पश्चात् द्रौपदी से पूदकर भीमसेन पुनः पाकशाला में चले गये। युवतियों में श्रेष्ठ द्रौपदी इस प्रकार कीचक को मरवाकर बड़ी प्रसन्न हुई। उसके सब संताप दूर हो गये। फिर वह सभा भवन के रक्षकों के पास जाकर बोली- ‘आओ, देखो, ‘परायी स्त्री के प्रति कामोन्मत्त रहने वाला यह कीचक मेरे पति गन्धर्वों द्वारा मारा जाकर वहाँ नृत्यशाला में पड़ा है’। उसका यह कथन सुनकर नृत्यशाला के रक्षक सहस्त्रों की संख्या में हाथों में मशाल लिये सहसा वहाँ आये और उस घर के भीतर जाकर उन्होंने देखा; कीचक को गन्धर्व ने मार गिराया है, उसके प्राण निकल गये हैं और उसकी लाश खून से लथपथ होकर धरती पर पड़ी है। उसे हाथ-पैर से हीन देख उन सबको बड़ी व्यथा हुई। फिर वे सभी बडत्रे आश्चर्य में पडत्रकर उसे ध्यान से देखने लगे। कीचक को इस तरह मारा गया देख वे आपस में बोले- ‘यह कर्म तो किसी मनुष्य का किया हुआ नहीं हो सकता। देखो न, इसकी गर्दन, हाथ, पैर और सिर आदि अंग कहाँ चले गये ?’ यों कहकर जब परीक्षा की, तो वे इसी निश्चय पर पहुँचे कि हो-न-हो, इसे गन्धर्व ने मारा है।
इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्व के अन्तर्गत कीचकवधपर्व में कीचक वध विषयक बाईसवाँ अध्याय पूरा हुआ। (दक्षिणात्य अधिक पाठ के 2½ श्लोक मिलाकर कुल 96½ श्लोक हैं)
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