महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 92 वैष्णवधर्म पर्व भाग-38

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १२:४५, २ अगस्त २०१५ का अवतरण ('==द्विनवतितम (92) अध्याय: आश्‍वमेधिक पर्व (वैष्णवधर्म प...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

द्विनवतितम (92) अध्याय: आश्‍वमेधिक पर्व (वैष्णवधर्म पर्व)

महाभारत: आश्‍वमेधिक पर्व: द्विनवतितम अध्याय: भाग-38 का हिन्दी अनुवाद

राजन् ! जो ब्राह्मण सदाचारी, थोड़ी – सी आजीविका पर गुजारा करने वाले, दुर्बल, तपस्‍वी और भिक्षा से निर्वाह करने वाले हों, वे यदि याचक होकर कुछ मांगने आवें तो उन्‍हें दिये हुए दान का फल महान होता है। धर्मात्‍माओं में श्रेष्‍ठ युधिष्‍ठिर ! इन सब बातों को पूर्ण रूप से जानकर धनहीन और अपना उपकार न करने वाले वेदवेत्‍ता ब्राह्मण को दान करो। धर्मज्ञ, यदि तुम अपने दान को अक्षय बनाना चाहते हो तो जो दान तुम्‍हें प्रिय लगता हो तथा जिसे वेदवेत्‍ता ब्राह्मण पसंद करते हों वही दान करो। युधिष्‍ठिर ! अब नरक में जाने वाले पुरुषों का वर्णन सुनो। जो परायी स्‍त्री का अपहरण करते हैं, पर स्‍त्री के साथ व्‍याभिचार करते हैं और दूसरों की स्‍त्रियों को दूसरे पुरुषों से मिलाया करते हैं, वे भी नरक में पड़ते हैं। चुगलखोर, सुलह की शर्त तोड़ने वाले, पराये धन से जीविका चलाने वाले, वर्ण और आश्रम से विरूद्ध आचरण करने वाले, पाखण्‍डी, पापाचारी तथा जो उनकी सेवा करते हैं, वे सब नरकगामी होते हैं। जो मनुष्‍य चिरकाल तक अपने साथ रहे हुए सहनशील, जितेन्‍द्रिय, दुर्बल और बुद्धिमान् मनुष्‍यों को भी काम निकल जाने पर त्‍याग देते हें, वे नरकगामी होते हैं। जो बच्‍चो, बूढ़ों तथा थके हुए मनुष्‍यों को कुछ न देकर अकेले ही मिठाई खाते हैं, उन्‍हें भी नरक में गिरना पड़ता है। प्राचीन काल के ऋिषयों ने इस प्रकार नरकगामी मनुष्‍यों का वर्णन किया है । युधिष्‍ठिर ! अब स्‍वर्ग में जाने वालों का वर्णन सुनो। जो दान, तपस्‍या, सत्‍य – भाषण और इन्‍द्रिय संयम के द्वारा निरन्‍तर धर्माचरण में लगे रहते हैं, वे मनुष्‍य स्‍वर्गगामी होते हैं। पाण्‍डुनन्‍दन ! जो उपाध्‍याय की सेवा करके उनसे वेद पढ़ते तथा प्रतिग्रह में आसक्‍ति नहीं रखते, वे मनुष्‍य स्‍वर्गगामी होते हैं। जो मधु, मांस, आसव (मदिरा) – से निवृत्‍त होकर उत्‍तम व्रत का पालन करते हैं और पर स्‍त्री के संसर्ग से बचे रहते हैं, वे मनुष्‍य स्‍वर्ग को जाते हैं। जो मनुष्‍य माता – पिता की सेवा करते हैं तथा भाइयों के प्रति स्‍नेह रखते हैं, वे मनुष्‍य स्‍वर्ग को जाते हैं। जो भोजन के समय घर से बाहर निकलकर अतिथि सेवा करते हैं, अतिथियों से प्रेम रखते हैं और उनके लिये कभी अपना दरवाजा बंद नहीं करते हैं, वे मनुष्‍य स्‍वर्गगामी होते हैं। जो दरिद्र मनुष्‍यों की कन्‍याओं का धनियों से ब्‍याह करा देते हैं अथवा स्‍वयं धनी होते हुए भी दरिद्र की कन्‍या से ब्‍याह करते हैं, वे मनुष्‍य स्‍वर्ग में जाते हैं। जो श्रद्धापूर्वक रस, बीज और ओषधियों का दान करते हैं, वे मनुष्‍य स्‍वर्गगामी होते हैं। जो मार्ग में जिज्ञासा करने वाले पथिकों को अच्‍छे – बुरे, सुखदायक और दु:खदायक मार्ग का ठीक – ठीक परिचय दे देते हैं, वे मनुष्‍य स्‍वर्गगामी होते हैं। जो अमावस्‍या, पूर्णिमा, चतुर्दशी, अष्‍टमी – इन तिथियों में दोनों संध्‍याओं के समय, आर्द्रा नक्षत्र में, जन्‍म – नक्षत्र में, विषुव योग में और श्रवण नक्षत्र में स्‍त्री समागम से बचे रहते हैं, वे मनुष्‍य भी स्‍वर्ग में जाते हैं ।। राजन् ! इस प्रकार हव्‍य - कव्‍य के विधान का समय बताया गया और स्‍वर्ग तथा नरक में ले जाने वाले धर्म – अधर्मों का वर्णन किया गया । अब और क्‍या सुनना चरहते हो।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।