महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 350 श्लोक 22-27

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पञ्चाशदधिकत्रिशततम (350) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: पञ्चाशदधिकत्रिशततम अध्याय: श्लोक 22-27 का हिन्दी अनुवाद

ब्रह्माजी ने कहा - वत्स ! मैं इन दिनों गिरिवर वैजयन्त का निरन्तर सेवन कर रहा हूँ, इसका कारण यह है कि यहाँ एकाग्रचित्त से विराट् पुरुष का चिन्तन किया करता हूँरुद्र बोले - ब्रह्मन् ! आप स्वयम्भू हैं। आपने बहुत से पुरुषों की सृष्टि की है और अभी दूसरे-दूसरे पुरुषों की सृश्टि करते जा रहे हैं। वह विराट् भी तो एक पुरुष ही है, फिर उसमें क्या विशेषता है ? प्रभो ! आप जिन एक पुरुषोत्तम का चिन्तन करते हैं, वे कौन हैं ? मेरे इस संशय का समाधान कीजिये। इस विषय को सुनने के लिये मेरे मन में बड़ी उत्कण्ठा हो रही है।

ब्रह्माजी ने कहा - बेटा ! तुमने जिन बहुत से पुरुषों का उल्लेख किया है, उनके विषय में तुम्हारा यह कथन ठीक ही है। जिनकी सृष्टि मैं करता हूँ, उनका चिन्तन मैं क्यों करूँगा ? मैं तुम्हें उस एक पुरुष के सम्बन्ध में बताऊँगा, जो सबका आधार है और जिस प्रकार वह बहुत से पुरुषों का एकमात्र कारण बताया जाता है। जो लोग साधन करते-करते गुणातीत हो जाते हैं, वे ही उस विश्वरूप, अत्यन्त महान्, सनातन एवं निर्गुण परम पुरुष में प्रवेश करते हैं। इस प्रकार श्रीमहाभारत शानितपर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्मपर्व में नारायण की महिमा के प्रसंग में ब्रह्मा तथा रुद्र का संवचाद विषयक तीन सौ पचासवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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