महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 92 वैष्णवधर्म पर्व भाग-55
द्विनवतितम (92) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (वैष्णवधर्म पर्व)
अत: श्रेष्ठ ब्राह्मणों को उचित है कि वे मेरा विशेष प्रिय करने के लिये मुझ में चित्त लगाकर इन तिथियों में उपवास करें। नरश्रेष्ठ ! जो सब में उपवास न कर सके, वह केवल द्वादशी को ही उपवास करें; इससे मुझे बड़ी प्रसन्नता होती है। जो मार्गशीर्ष की द्वादशी को दिन-रात उपवास करके ‘केशव’ नाम से मेरी पूजा करता है, उसे अश्वमेध-यज्ञ का फल मिलता है। जो पौष मास की द्वादशी को उपवास करके जो ‘नारायण’ नाम से मेरी पूजा करता है, वह वाजिमेध-यज्ञ का फल पाता है। राजन् ! जो माघ की द्वादशी को उपवास करके ‘माधव’ नाम से मेरा पूजन करता है, उसे राजसूय-यज्ञ का फल प्राप्त होता है। नरेष्वर ! फाल्गुन के महीने में द्वादशी को उपवास करके जो ‘गोविन्द’ के नाम से मेरा अर्चन करता है, उसे अतिरात्र याग का फल मिलता है। चैत्र महीने की द्वादशी तिथि को व्रत धारण करके जो ‘विष्णु’ नाम से मेरी पूजा करता है, वह पुण्डरीक-यज्ञ के फल का भागी होता है। पाण्डुनन्दन ! वैशाख की द्वादशी को उपवास करके ‘मधुसूदन’ नाम से मेरी पूजा करने वाले को अग्निष्टोम-यज्ञ का फल मिलता है। राजन् ! जो मनुष्य ज्येष्ठ मास की द्वादशी तिथि को उपवास करके ‘त्रिविक्रम’ नाम से मेरी पूजा करता है, वह गोमेध के फल का भागी होता है। भरतश्रेष्ठ ! आषाढ़मास की द्वादशी को व्रत रहकर ‘वामन’ नाम से मेरी पूजा करने वाले पुरुष को नरमेध-यज्ञ का फल प्राप्त होता है। राजन् ! श्रावण महीने में द्वादशी तिथि को उपवास करके जो ‘श्रीधर’ नाम से मेरा पूजन करता है, वह पंचयज्ञों का फल पाता है। नरेश्वर ! भाद्रपद मास की द्वावदशी तिथि को उपवास करके ‘हृषीकेश’ नाम से मेरा अर्चन करने वाले को सौत्रामणि-यज्ञ का फल मिलता है। महाराज ! आश्विन की द्वादशी को उपवास करके जो ‘पदम्भनाभ’ नाम से मेरा अर्चन करता है, उसे एक हजार गोदान का फल प्राप्त होता है। राजन् ! कार्तिक महीने की द्वादशी तिथि को व्रत रहकर जो ‘दामोदर’ नाम से मेरी पूजा करता है, उसको सम्पूर्ण यज्ञों का फल मिलता है। नरपते ! जो द्वादशी को केवल उपवास ही करता है, उसे पूर्वोक्त फल का आधा भाग ही प्राप्त होता है। इसी प्रकार श्रावण में यदि मनुष्य भक्तियुक्त चित्त से मेरी पूजा करता है तो वह मेरी सालोक्य मुक्ति को प्राप्त होता है, इसमें तनिक भी अन्यिथा विचार करने की आवश्यकता नहीं है। उपर्युक्त रूप से प्रतिमास आलस्य छोड़कर मेरी पूजा करते-करते जब एक साल पूरा हो जाय, तब पुन: दूसरे साल भी मासिक पूजन प्रारम्भ कर दे। इस प्रकार जो मेरा भक्त मेरी आराधना में तत्पर होकर बारह वर्ष तक बिना किसी विघ्न-बाधा के मेरी पूजा करता रहता है, वह मेरे स्वरूप को प्राप्त हो जाता है। राजन् ! जो मनुष्य द्वादशी तिथि को प्रेमपूर्वक मेरी और वेदसंहिता की पूजा करता है, उसे पूर्वोक्त फलों की प्राप्ति होती है, इसमें संशय नहीं है ।। जो द्वादशी तिथि को मरे लिये चन्दन, पुष्प, फल, जल, पत्र अथवा मूल अर्पण करता है उसके समान मेरा प्रिय भक्त कोई नहीं है।
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