महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 357 श्लोक 1-13

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तीन सौ सत्तावनवाँ अध्याय: शान्तिपर्व (मोक्षधर्मपर्व)

महाभारत: शान्तिपर्व : तीन सौ सत्तावनवाँ अध्याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद


नागपत्नि के द्वारा ब्राह्मण का सत्कार और वार्तालाप के बाद ब्राह्मण के द्वारा नागराज के आगमन की प्रतीक्षा

भीष्मजी कहते हैं - राजन् ! वह ब्राह्मण क्रमशः अनकानेक विचित्र वनों, तीर्थों और सरोवरों को लाँघता हुआ किसी मुनि के आरम पर उपस्थित हुआ। उस मुनि से ब्राह्मण ने अपने अतिथि के बताये हुए नाग का पता पूछा। मुनि ने जो कुद बताया, उसे यथावत् सुनकर वह पुनः आगे बढ़ा। अपने उद्देश्य को ठीक-ठीक समझने वाला वह ब्राह्मण विधिपूर्वक यात्रा करके नाग के घर पर जा पहुँचा। घर के द्वार पर पहुँचकर उसने ‘भोः’ शब्द से विभूषित वचन बोलते हुए पुकार लगायी- ‘कोई है ? मैं यहाँ द्वार पर आया हूँ’। उसकी वह बात सुनकर धर्म के प्रति अनुराग रखने वाली नागराज की परम सुन्दरी पतिव्रता पत्नी ने उस ब्राह्मण को दर्शन दिया। उस धर्मपरायणा सती ने ब्राह्मण का विधिपूर्वक पूजन किया और स्वागत करते हुए कहा- ‘ब्राह्मणदेव ! आज्ञा दीजिये, मैं आपकी क्या सेवा करूँ ?

ब्राह्मण ने कहा- देवि ! आपने मधुर वाणी से मेरा स्वागत और पूजन किया। इससे मेरी सारी थकावट दूर हो गयी। अब मैं उत्तम नागदेव का दर्शन करना चाहता हूँ। यही मेरा सबसे बड़ा कार्य है और यही मेरा महान् मनोरथ है, मैं इसी उद्देश्य से आज नागराज के इस आश्रम पर आया हूँ। नागपत्नी ने कहा - विप्रवर ! मेरे माननीय पतिदेव सूर्यदेव का रथ ढोने के लिये गये हुए हैं। वर्ष में एक बार एक मास तक उन्हें यह कार्य करना पड़ता है। पंद्रह दिनों में ही वे यहाँ दर्शन देंगे- दसमें संशय नहीं है। मेरे पतिदेव-आर्यपुत्र के प्रवास का यह कारण आपको विदित हो। उनके दर्शन के सिवा और क्या काम है ? यह मुझे बताइये; अजससे वह पूर्ण किया जाय।

ब्राह्मण ने कहा - सती-साध्वी देवि !फ मैं उनके दर्शन करने का निश्चय करके ही यहाँ आया हूँ; अतः उनके आगमन की प्रतीक्षा करता हूआ मैं इस महान् वन में निवास करूँगा। जब नागराज यहाँ आ जायँ, तब उन्हें शानभाव से यह बतला देना चाहिये कि मैं यहाँ आया हूँ। तुम्हें ऐसी बात उनसे कहनी चाहिये, जिससे वे मेरे निकट आकर मुझे दर्शन दें।।11।। मैं भी यहाँ गोमती के सुन्दर तट पर परिमित आहार करके तुम्हारे बताये हुए समय की प्रतीक्षा करता हुआ निवास करूँगा। तदनन्तर वह श्रेष्ठ ब्राह्मण नागपत्नि को बारंबार (नागराज को भेजने के लिये) जताकर गोमती नदी के तट पर ही चला गया।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शानितपर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्मपर्व में उन्छवृत्ति का उपाख्यान विषयक तीन सौ सत्तावनवाँ अध्याय पूरा हुआ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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