महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 72 श्लोक 1-18

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द्विसप्‍ततितम (72) अध्याय: आश्‍वमेधिकपर्व (अनुगीता पर्व)

महाभारत: आश्‍वमेधिकपर्व: द्विसप्‍ततितम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद
व्‍यासजी की आज्ञा से अश्‍व की रक्षा के लिये अर्जुन की, राज्‍य और नगर की रक्षा के लिये भीमसेन और नकुल की तथा कुटुम्‍ब-पालन के लिये सहदेव की नियुक्‍ति

वैशम्‍पायनजी कहते हैं– जनमेजय ! भगवान श्रीकृष्‍ण के ऐसा कहने पर मेधावी धर्मपुत्र युधिष्‍ठिर ने व्‍यासजी को सम्‍बोधित करके कहा–‘भगवन ! जब आपको अश्‍वमेध यज्ञ आरम्‍भ करने का ठीक समय जान पड़े तभी आकर मुझे उसकी दीक्षा दें ; क्‍योंकि मेरा यज्ञ आपके ही अधीन है’। व्‍यासजी ने कहा– कुन्‍तीनन्‍दन ! जब यज्ञ का समय आयेगा, उस समय मैं, पैल और याज्ञवल्‍क्‍य- ये सब आकर तुम्‍हारे यज्ञ का सारा विधि–विधान सम्‍पन्‍न करेंगे; इसमें संशय नहीं है। पुरुष प्रवर ! आगामी चैत्र की पूर्णिमा को तुम्‍हें यज्ञ की दीक्षा दी जायेगी, तब तक तुम उसके लिये सामग्री संचित करो । अश्‍व विद्या के ज्ञाता सूत और ब्राह्मण यज्ञार्थ की सिद्धि के लिये पवित्र अश्‍व की प्रतीक्षा करें। पृथ्‍वीनाथ ! जो अश्‍व चुना जाय, उसे शास्‍त्रीय विधि के अनुसार छोड़ो और वह तुम्‍हारे दीप्‍तिमान यश का विस्‍तार करता हुआ समुद्रपर्यन्‍त समस्‍त पृथ्‍वी पर भ्रमण करे। वैशम्‍पायन कहते हैं – राजेन्‍द्र ! यह सुनकर पाण्‍डुपुत्र राजा युधिष्‍ठिर ने ‘बहुत अच्‍छा’ कहकर ब्रह्मवादी व्‍यासजी के कथनानुसार सारा कार्य सम्‍पन्‍न किया। राजेन्‍द्र ! उन्‍होंने मन में जिन–जिन सामानों को एकत्र करने कासंकल्‍प किया था, उन सबको जुटाकर धर्मपुत्र अमेयात्‍मा राजा युधिष्‍ठिर ने श्रीकृष्‍णद्वैपायन व्‍यासजी को सूचना दी। तब महातेजस्‍वी व्‍यास ने धर्मपुत्र राजा युधिष्‍ठिर से कहा–‘राजन ! हम लोग यथा समय उत्‍तम योग आने पर तुम्‍हें दीक्षा देने को तैयार हैं। ‘कुरुनन्‍दन ! इस बीच में तुम सोने के ‘स्‍फ्य’ और ‘कूर्च’ बनवा लो तथा और भी जो सुवर्णमय सामान आवश्‍यक हों, उन्‍हें तैयार करा डालो। ‘आज शास्‍त्रीय विधि के अनुसार यज्ञ–सम्‍बन्‍धी अश्‍व को क्रमश: सारी पृथ्‍वी पर घूमने के लिये छोड़ना चाहिये, जिससे वह सुरक्षित रूप से सब ओर विचर सके’। युधिष्‍ठिर ने कहा– ब्रह्मन् ! यह घोड़ा उपस्‍थित है । इसे किस प्रकार छोड़ा जाये, जिससे यह समूची पृथ्‍वी पर इच्‍छानुसार घूम आवे । इसकी व्‍यवस्‍था आप ही कीजिये तथा मुने ! यह भी बताइये कि भूमण्‍डल में इच्‍छानुसार घूमने वाले इस घोड़े की रक्षा कौन करे ? वैशम्‍पायनजी कहते हैं– राजेन्‍द्र ! युधिष्‍ठिर के इस तरह पूछने पर श्रीकृष्‍णद्वैपायन व्‍यास ने कहा –‘राजन ! अर्जुन सब धनुर्धारियों में श्रेष्‍ठ हैं । वे विजय में उत्‍साह रखने वाले, सहनशील और धैर्यवान् हैं; अत: वे ही इस घोड़ेकी रक्षा करेंगे। उन्‍होंने निवात कवचों का नाश किया था । वे सम्‍पूर्ण भूमण्‍डल को जीतने की शक्‍ति रखते हैं। ‘उनके पास दिव्‍य अस्‍त्र, दिव्‍य कवच, दिव्‍य धनुष और दिव्‍य तसकर हैं, अत: वे ही इस घोड़े के पीछे–पीछे जायँगे। ‘नृपश्रेष्‍ठ ! वे धर्म और अर्थ में कुशल तथा सम्‍पूर्ण विद्याओं में प्रवीण हैं, इसलिये आपके यज्ञ सम्‍बन्‍धी अश्‍व का शास्‍त्रीय विधि के अनुसार संचालन करेंगे। ‘जिनकी बड़ी–बड़ी भुजाएं हैं, श्‍याम वर्ण है, कमल– जैसे नेत्र हैं, वे अभिमन्‍यु के वीर पिता राजपुत्र अर्जुन इस घोड़े की रक्षा करेंगे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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