महाभारत सभा पर्व अध्याय 78 श्लोक 18-24
अष्टसप्ततितम (78) अध्याय: सभा पर्व (द्यूत पर्व)
शक्ति से समस्त राजओं को तथा धर्म सेवन द्वारा ऋषियों को भी जीत लेते हो । तुम इन्द्र से मन में विजय का उत्साह प्राप्त करो । क्रोध को काबू में रखने का पाठ यमराज से सीखो। उदारता एवं दान में कुबेर का और संयम में वरूण का आदर्श ग्रहण करो । दूसरों के हित के लिये अपने आपको निछावर करना, सौम्यभाव (शीतलता) तथा दूसरों को जीवन-दान देना—इन सब बातों की शिक्षा तुम्हें जल से लेनी चाहिये। तुम भूमि से क्षमा, सूर्यमण्डल से तेज, वायु से बल तथा सम्पूर्ण भूतों से अपनी सम्पत्ति प्राप्त करो । तुम्हें कभी कोई रोग न हो, सदा मण्डल-ही-मण्डल दिखायी दे । कुशलपूर्वक वन से लौटने पर मैं फिर तुम्हें देखूँगा । युधिष्ठिर ! आपत्ति काल में, धर्म तथा अर्थ का संकट उपस्थित होने पर अथवा सभी कार्यो में समय-समय पर अपने उचित कर्तव्य का पालन करना । कुन्तीनन्दन ! भारत ! तुमसे आवश्यक बातें कर लो । तुम्हें कल्याण प्राप्त हो। जब वन से कुशलपूर्वक कृतार्थ होकर लौटोगे, तब यहाँ आने पर फिर तुमसे मिलूँगा । तुम्हारे पहले के किसी दोष को दूसरा कोई न जाने, इसकी चेष्टृा रखना। वैशम्पायनजी कहते हैं—जनमेजय ! विदुर के ऐसा कहने पर सत्य पराक्रमी पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर भीष्म और द्रोण को नमस्कार करके वहाँ से प्रस्थित हुए।
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