जलोदर
जलोदर
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 |
पृष्ठ संख्या | 390 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | राम प्रसाद त्रिपाठी |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | महामहोपाध्याय उमो मिश्र |
जलोदर (Ascites) उदरगुहागत अशोथयुक्त (Noninflammatory) द्रवसंचय है। यह रोग नही किंतु हृदय, वृक्क, यकृत इत्यादि में उत्पन्न हुए विकारों का प्रधान लक्षण है। यकृत के प्रतिहारिणी (portal) रक्तसंचरण की बाधा हमेशा तथा विशेष रूप से दिखाई देनेवाले जलोदर का सर्वसाधारण कारण है। यह बाधा कर्कट (Cancer) और सूत्रणरोग (Cirrhosis) जैसे यकृदंतर्गत कुछ विकारों में तथा आमाशय, ग्रहणी, अग्न्याशय इत्यादि एवं विदर (Fissure) में बढ़ी हुई लसीका ग्रंथियों जैसे यकृद्बाह्य कुछ विकारों में प्रतिहारिणी शिराओं पर दबाव पड़ने से उत्पन्न होती है।
यकृद्विकारों में प्रथम जलोदर होकर पश्चात् उदरगुहागत शिराओं पर द्रव का दबाव पड़ने से पैरों पर सूजन आती है। हृद्रय रोग में प्रथम पैरों पर सूजन, दिल में धड़कन, साँस की कठिनाई इत्यादि लक्षण मिलते हैं, और कुछ काल के पश्चात् जलोदर उत्पन्न होता है। वृक्कविकार में प्रथम देह शीथ का, विशेषतया प्रात:काल चेहरे तथा आँखों पर सूजन दिखाई देने का इतिहास मिलता है और कुछ काल के पश्चात् जलोदर होता है। इन सामान्य कारणों के अतिरिक्त कभी कभी तरुणों में जीर्ण क्षय पेटझिल्लीशोथ (chronic tuberculous peritonitis) और अधिक उम्र के रोगियों में कर्कट एवं दुष्ट रक्तक्षीणता (pernicious anaemia) भी जलोदर के कारण हो सकते हैं।( भास्कर गोविंद घाणेकर)
टीका टिप्पणी और संदर्भ