महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 150 श्लोक 67-82

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पन्चाशदधिकशततम (150) अध्‍याय: अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासनपर: पन्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 67-82 का हिन्दी अनुवाद

उसके यहाँ रोग या हिंसक जन्तुओं का भय नहीं रहता। हाथी अथवा चोर से भी कोई बाधा नहीं आती। शोक कम हो जाता है और पाप से छुटकारा मिल जाता है। जो मनुष्य जहाज में या किसी सवारी में बैठने पर, विदेश में अथवा राजदरबार में जाने पर मन-ही-मन उत्तम गायत्री-मन्त्र का जप करता है, वह परम सिद्धि को प्राप्त होता है। गायत्री का जप करने से द्विज को राजा, पिशाच, राक्षस, आग, पानी, हवा और साँप आदि का भय नहीं होता। जो उत्तम गायत्री-मन्त्र का जप करता है, वह पुरूष चारों वर्णों और विशेषतः चारों आश्रमों में सदा शान्ति स्थापन करता है। जहाँ गायत्री का जप किया जाता है, उस घर के काठ के किवाड़ों में आग नहीं लगती। वहाँ बालक की मृत्यु नहीं होती तथा उस घर में साँप नहीं टिकते हैं। उस घर के निवासी, जो परब्रह्मस्वरूप गायत्री मन्त्र के गुणों का कीर्तन सुनते हैं, उन्हें कभी दुख नहीं होता है तथा वे परमगति को प्राप्त होते हैं। गौओं के बीच में गायत्री का जप करने वाले पुरूष पर गौओं का वात्सल बहुत बढ़ जाता है। प्रस्थान-काल में अथवा परदेश में सभी अवस्थाओं में मनुष्य को इसका जप करना चाहिये। नरेश्वर! सदा शुद्धचित्त होकर जप करे, होम करने वाले ऋषियों के लिये यह परम गोपनीय मन्त्र है। यह सिद्धि को प्राप्त हुए महर्षि वेदव्यास का कहा हुआ यथार्थ एवं प्राचीन इतिहास है। इसमें पराशर मुनि के दिव्य मत का वर्णन है। पूर्वकाल में इन्द्र को इसका उपदेश किया गया था। वही यह मन्त्र तुमसे कहा गया है। यह गायत्री मन्त्र सत्य एवं सनातन ब्रह्मरूप है। यह सम्पूर्ण भूतों का हृदय एवं सनातन श्रुति है। चन्द्र, सूर्य, रघु और कुरू के वंश में उत्पन्न हुए सभी राजा पवित्र भाव से प्रतिदिन गायत्री मन्त्र का जप करते आये हैं। गायत्री संसार के प्राणियों की परमगति है। प्रतिदिन देवताओं, सप्तर्षियों और धु्रव का बारंबार स्मरण करने से समस्त संकटों से छुटकारा मिल जाता है। उनका कीर्तन सदा ही अशुभ अर्थात् पाप के बन्धन से मुक्त कर देता है। काश्यप, गौतम, भृगु, अंगिरा, अत्रि, शुक्र, अगस्त्य और बृहस्पति आदि वृद्ध ब्रह्मर्षियों ने सदा ही गायत्री मन्त्र का सेवन किया है। महर्षि भारद्वाज ने जिसका भलीभाँति मनन किया है, उस गायत्री मन्त्र को ऋचीक के पुत्रों ने उन्हीं से प्राप्त किया तथा इन्द्र ओर वसुओं ने वसिष्ठजी से सावित्री मन्त्र को पाकर उसके प्रभाव से सम्पूर्ण दानवों को परास्त कर दिया। जो मनुष्य विद्वान् और बहुश्रुत ब्राह्मण को सौ गौओं के सींगों में सोना मढ़ाकर दान करता है और जो केवल दिव्य महाभारत कथा का प्रतिदिन प्रवचन करता है, उन दोनेां को एक-सा पुण्य फल प्राप्त होता है। भृगु का नाम लेने से धर्म की वृद्धि होती है। वसिष्ठ मुनि को नमस्कार करने से वीर्य बढ़ता ह। राजा रघु को प्रणम करने वाला क्षत्रिय संग्रामविजयी होता है तथा अश्विनीकुमारों का नाम लेने वाले मनुष्य को कभी रोग नहीं सताता। राजन्! यह सनातन ब्रह्मरूपा गायत्री का माहात्म्य मैंने तुमसे कहा है। भारत! अब और जो कुछ भी तुम पूछना चाहते हो, वह भी तुम्हें बताऊँगा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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