महाभारत आदि पर्व अध्याय 154 श्लोक 1-9

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चतुष्‍पञ्चादशधिकशततम (154) अध्‍याय: आदि पर्व (जतुगृह पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: चतुष्‍पञ्चादशधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-9 का हिन्दी अनुवाद

युधिष्ठिर भीमसेन को हिडिम्‍बा के वध से रोकना, हिडिम्‍बा की भीमसेन के लिये प्रार्थना, भीमसेन और हिडिम्‍बा का मिलन तथा घटोत्‍कच की उत्‍पत्ति

वैशम्‍पायनजी कहते हैं- जनमेजय ! हिडिम्‍बासुर की बहिन राक्षसी हिडिम्‍बा बिना कुछ कहे-सुने तुरंत पाण्‍डवों के ही पास आयी और फिर माता कुन्‍ती तथा पाण्‍डुनन्‍दन धर्मराज युधिष्ठिर को प्रणाम करके उन सबके प्रति समादर का भाव प्रकट करती हुई भीमसेन से बोली।। हिडिम्‍बा ने कहा- (आर्यपुत्र !) आपके दर्शनमात्र से मैं कामदेव के अधीन हो गयी और अपने भाई के क्रूरतापूर्ण वचनों की अवहेलना करके आपका ही अनुसरण करने लगी।उस भंयकर आकृतिवाले राक्षस पर आपने जो पराक्रम प्रकट किया है, उसे मैंने अपनी आंखों देखा है, अत: मैं सेविका आपके शरीर की सेवा करना चाहती हूं।। भीमसेन बोले-हिडिम्‍बे ! राक्षस मोहिनी माया का आश्रय लेकर बहुत दिनों तक वैर का स्‍मरण रखते हैं, अत: तू भी अपने भाई के मार्ग पर चली जा। यह सुनकर युधिष्ठिर ने कहा- पुरुषसिंह भीम ! यद्यपि तुम क्रोध से भरे हुए हों, तो भी स्‍त्री का वध न करो। पाण्‍डुनन्‍दन ! शरीर की रक्षा की अपेक्षा भी अधिक तत्‍परता से धर्म की रक्षा करो। महाबली हिडिम्‍ब हम लोगों को मारने के अभिप्राय से आ रहा था। अत: तुमने जो उसका वध किया, वह उचित ही है। उस राक्षस की बहिन हिडिम्‍बा यदि क्रोध भी करे तो हमारा क्‍या कर लेगी ? वैशम्‍पायनजी कहते हैं-जनमेजय ! तदनन्‍तर हिडिम्‍बा ने हाथ जोड़कर कुन्‍तीदेवी तथा उनके पुत्र युधिष्ठिर को प्रणाम करके इस प्रकार कहा- ‘आर्यें ! स्त्रियों को इस जगत् में जो कामजनित पीड़ा होती हैं, उसे आप जानती ही हैं। शुभे ! आपके पुत्र भीमसेन की ओर से मुझे वही कामदेवजनित कष्‍ट प्राप्‍त हुआ है। ‘मैंने समय की प्रतिक्षा में उस महान् दु:ख को सहन किया है। अब वह समय आ गया है। आशा है, मुझे अ‍भीष्‍ट सुख की प्राप्ति होगी। ‘शुभे ! मैंने अपने हितैषी सुह्रदों, स्‍वजनों तथा स्‍वधर्म का परित्‍याग करके आपके पुत्र पुरुषसिंह भीमसेन को अपना पति चुना है। ‘यशस्विनि ! यदि ये वीरवर भीमसेन या आप मेरी इस प्रार्थना को ठुकरा देंगी तो मैं जीवित नहीं रह सकूंगी। यह मैं आपसे सत्‍य कहती हूं। अत: वरवर्णिनी ! आपको मुझे एक मूढ़ स्‍वभाव की स्‍त्री मानकर या अपनी भक्‍ता जानकर अथवा अनुचरी (सेविका) समझकर मुझ पर कृपा करनी चाहिये ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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