महाभारत आदि पर्व अध्याय 154 श्लोक 40-46

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चतुष्‍पञ्चादशधिकशततम (154) अध्‍याय: आदि पर्व (जतुगृह पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: चतुष्‍पञ्चादशधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 40-46 का हिन्दी अनुवाद

तदनन्‍तर हिडिम्‍बा पाण्‍डवों से यह कहकर कि भीमसेन के साथ रहने का मेरा समय समाप्‍त हो रहा, आवश्‍यकता के समय पुन: मिलने की प्रतिज्ञा करके अपने अभीष्‍ट स्‍थान को चली गयी। तत्‍पश्‍चात् विशालकाय घटोत्‍कच ने कुन्‍ती सहित पाण्‍डवों को यथायोग्‍य प्रणाम करके उन्‍हें सम्‍बोधित करके कहा- ‘निष्‍पाप गुरुजन ! आप नि:शक्‍ख होकर बतायें, मैं आपकी क्‍या सेवा करुं ?’ इस प्रकार पूछने वाले भीमसेन कुमार से कुन्‍ती ने कहा- ‘बेटा ! तुम्‍हारा जन्‍म कुरुकुल में हुआ है। तुम मेरे लिये साक्षात् भीमसेन के समान हो। पांचों पाण्‍डवों के ज्‍येष्‍ठ पुत्र हो, अत: हमारी सहायता करो’। वैशम्‍पायनजी कहते हैं-जनमेजय ! कुन्‍ती के यों कहने पर घटोत्‍कच ने प्रणाम करके ही उनसे कहा- 1 कोई-कोई उत्‍कच का अर्थ ‘ऊपर उठे हुए बालों वाला’ भी करते हैं। ‘दादीजी ! लोक में जैसे रावण और मेघनाद बहुत बड़े बलवान् थें, उसी प्रकार इस मानव-जगत् में मैं भी उन्‍हीं के समान विशालकाय और महापराक्रमी हूं; बल्कि उनसे भी बढ़कर हूं। ‘जब मेरी आवश्‍यकता होगी, उसी समय मैं स्‍वंय अपने पितृवर्ग की सेवा में उपस्थित हो जाऊंगा।‘ यों कहकर राक्षस श्रेष्‍ठ घटोत्‍कच पाण्‍डवों से आज्ञा लेकर उत्‍तर दिशा की ओर चला गया। महामना इन्‍द्र ने अनुपम पराक्रमी कर्ण की शक्ति का आघात सहन करने के लिये घटोत्‍कच की सृष्टि की थी। वह कर्ण के सम्‍मुख युद्ध करने मे समर्थ महारथी वीर था।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के अन्‍तर्गत हिडिम्‍बवध पर्व में घटोत्‍कच की उत्‍पत्ति विषयक एक सौ चौवनवां अध्‍याय पूरा हुआ। (दाक्षिणास्‍य अधिक पाठ के 33 श्‍लोक मिलाकर कुल 79 श्‍लोक हैं)


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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