महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 20 श्लोक 20-26

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विंश (20) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: विंश अध्याय: श्लोक 20-26 का हिन्दी अनुवाद

अष्टावक्र ने कहा- भद्रे! तुम स्वतंत्र कैसे हो ? इसमें जो कारण हो, वह बताओं! तीनों लोकों में कोई ऐसी स्त्री नहीं है जो स्वतंत्र रहने योग्य हो। कुमारावस्था में पिता इसकी रक्षा करते हैं, जवानी में वह पति के संरक्षणमें रहती है और बुढ़ापे में पुत्र उसकी देखभाल करते हैं। इस प्रकार स्त्रियों के लिये स्वतंत्रता नहीं है। स्त्री बोली- विप्रवर! मैं कुमारावस्था से ही ब्रह्माचारिणी हूं; अतः कन्या ही हूं-इसमें संशय नहीं है। अब आप मुझे पत्नी बनाइये। मेरी श्रद्धा का नाश न कीजिये।। अष्टावक्र ने कहा- जैसी मेरी दशा है, वैसी तुम्हारी है और जैसी तुम्हारी दशा है, वैसी मेरी है। यह वास्तव में वदान्य ऋषिके द्वारा परीक्षा ली जा रही है या सचमुच यह कोई विध्न तो नहीं है? (वे मन-ही-मन सोचन लगे-) यह पहले वृद्धा थी और अब दिव्य वस्त्राभूषणों से विभूषित कन्या रूप होकर मेरी सेवा में उपस्थित है। यह बड़े ही आश्चर्यकी बात है। क्या यह मेरे लिये कल्याणकारी रहेगा? परंतु इसका यह परम सुन्दर रूप पहले जराजीर्ण कैसे हो गया था और अब यहां यह कन्या रूप कैसे प्रकट हो गया? ऐसी दशा में यहां उसके लिये क्या उत्‍तर हो सकता है? मुझ में काम को दमन करने की शक्ति है और पूर्व प्राप्त मुनि-कन्या को किसी तरह भी प्राप्त करने का धैर्य बना हुआ है। इस शक्ति और धृति के ही सहारे में किसी तरह विचलित नहीं होऊँगा। मुझे धर्म का उल्लंघन अच्छा नहीं लगता। मैं सत्य के सहारे से पत्नी को प्राप्त करूंगा।

इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अन्तर्गत दानधर्म पर्व में अष्टावक्र और उत्‍तर दिशा का संवाद विषयक बीसवां अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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