महाभारत आदि पर्व अध्याय 155 श्लोक 1-14

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पञ्चपञ्चाशदधिकशततम (155) अध्‍याय: आदि पर्व (हिडिम्‍ब पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: पञ्चपञ्चाशदधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद

पाण्‍डवों को व्‍यासजीका दर्शन और उनका एकचक्रा नगरी में प्रवेश

वैशम्‍पायनजी कहते हैं-राजन् ! वे महारथी पाण्‍डव उस स्‍थान से हटकर एक वन से दूसरे वन में जाकर बहुत-से हिंसक पशुओं को मारते हुए बड़ी उतावली के साथ आगे बढ़े। मत्‍स्‍य, त्रिगर्त, पञ्चाल और कीचक- इन जनपदों के भीतर होकर रमणीय वनस्‍थलियों और सरोवरों को देखते हुए वे लोग यात्रा करने लगे। उन सबने अपने सिर पर जटाएं रख ली थी। वल्‍कल और मृगचर्म से अपने शरीर को ढंक लिया था और तपस्‍वी का वेष धारण कर रक्‍खा था। इस प्रकार वे महारथी महात्‍मा पाण्‍डव माता कुन्‍तीदेवी के साथ कहीं तो उन्‍हें पीठ पर ढोते हुए तीव्र गति से चलते थे, कहीं इच्‍छानुसार धीरे-धीरे पांव बढ़ाते थे और कहीं पुन: अपनी चाल का तेज कर देते थे। पाण्‍डव लोग सब शास्‍त्रों के ज्ञाता थे और प्रतिदिन उपनिषद, वेद-वेदांग तथा नीतिशास्‍त्र का स्‍वाध्‍याय किया करते थे। एक दिन जब वे स्‍वाध्‍याय में लगे थे, उन्‍हें पितामह व्‍यासजी का दर्शन हुआ। शत्रुओं को संताप देनेवाले पाण्‍डवों ने उस समय महात्‍मा श्रीकृष्‍णद्वैपायन को प्रणाम किया और अपनी माता के साथ वे सब लोग उनके आगे हाथ जोड़कर खड़े हो गये। तब व्‍यासजी ने कहा- भरतश्रेष्‍ठ पाण्‍डुकुमारो ! मैंने पहले ही तुम लोगों पर आये हुए इस संकट को जान लिया था। धृतराष्‍ट्र के पुत्रों ने तुम्‍हें जिस प्रकार अधर्मपूर्वक राज्‍य से बहिष्‍कृत किया है, वह सब जानकर तुम्‍हारा परम हित करने के लिये मैं यहां आया हूं। इसके लिये तुम्‍हें विषाद नहीं करना चाहिये; यह सब तुम्‍हारे भावी सुख के लिये हो रहा है। इसमें संदेह नहीं कि मेरे लिये तुम लोग और धृतराष्‍ट्र के पुत्र दुर्योधन आदि सब समान ही हैं। फिर भी जहां दीनता और बचपन है, वहीं मनुष्‍य अधिक स्‍नेह करते हैं; इसी कारण इस समय तुम लोगों पर मेरा अधिक स्‍नेह है। मैं स्‍नेहपूर्वक तुम लोगों का हित करना चाहता हूं। इसलिये मेरी बात सुनो। यहां पास ही जो यह रमणीय नगर हैं, इसमें रोग-व्‍याधि का भय नहीं है। अत: तुम सब लोग यहीं छिपकर रहो और मेरे पुन: आने की प्रतीक्षा करो। वैशम्‍पायनजी कहते हैं- जनमेजय ! इस प्रकार पाण्‍डवों को भलीभांति आश्‍वासन देकर सत्‍यवती नन्‍दन भगवान् व्‍यास उन सबके साथ एकचक्रा नगरी के निकट गये। वहां उन्‍होंने कुन्‍ती को इस प्रकार सात्‍वना दी। व्‍यासजी बोले- जीवित पुत्रोंवाली बहु ! तुम्‍हारे ये पुत्र नरश्रेष्‍ठ महात्‍मा धर्मराज युधिष्ठिर सदा धर्मपरायण हैं; अत: ये धर्म से ही सारी पृथ्‍वी को जीतकर भूमण्‍डल के सम्‍पूर्ण राजाओं पर शासन करेंगे। भीमसेन और अर्जुन के बल से समुन्‍द्रपर्यन्‍त सारी वसुधा अपने अधिकार में करके ये उसका उपभोग करेंगे; इसमें संशय नहीं है। तुम्‍हारे और भाद्री के सभी महारथी पुत्र सदा अपने राज्‍य में प्रसन्‍नचित्‍त हो सुखपूर्वक विचरेंगे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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