महाभारत आदि पर्व अध्याय 120 श्लोक 21-37

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०८:४२, ६ अगस्त २०१५ का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

विंशत्‍यधिकशततम (120) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: विंशत्‍यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 21-37 का हिन्दी अनुवाद

भद्रा बोली- परम धर्मज्ञ ! जो कोई भी विधवा स्त्री पति के बना जीवन धारण करती है, वह निरन्‍तर दु:ख में डूबी रहने के कारण वास्‍तव में जीती नहीं, अपितु मृततुल्‍या है। क्षत्रियशिरोमणे ! पति के न रहने पर नारी की मृत्‍यु हो जाय, इसी में उसका कल्‍याण है। अत: मैं भी आपके ही मार्ग पर चलना चाहती हूं, प्रसन्न होइये और मुझे अपने साथ ले चलिये। आपके बिना एक क्षण भी जीवित रहने का मुझमें उत्‍साह नहीं है। राजन् ! कृपा कीजिये और यहां से शीघ्र मुझे ले चलिये। नरश्रेष्ठ ! आप जहां कभी न लौटने के लिये गये हैं, वहीं का मार्ग समतल हो या विषम, मैं आपके पीछे-पीछे अवश्‍य चली चलूंगी। राजन् ! मैं छाया की भांति आपके पीछे लगी रहूंगी एवं सदा आपकी आज्ञा के अधीन रहूंगी। नरव्‍याघ्र ! मैं सदा आपके प्रिय और हित में लगी रहूंगी। कमल के समान नेत्रों वाले महाराज ! आपके बिना आज से हृदय को सुखा देने वाले कष्ट और मानसिक चिन्‍ताऐं मुझे सताती रहेंगी। मुझ अभागिनी ने निश्‍चय ही कितने जीवनसंगियों (स्त्री-पुरुषों) में विछोह कराया होगा। इसीलिये आज आपके साथ मेरा वियोग घटित हुआ है। महाराज ! जो स्त्री पति से विछुड़ जाने पर दो घड़ी भी जीवन धारण करती है, वह पापिनी नरक में पड़ी हुई-सी दु:खमय जीवन बिताती है। राजन् ! पूर्वजन्‍म के शरीर में स्थित रहकर मैंने एक साथ रहने वाले कुछ स्त्री-पुरुषों में कराया है। उन्‍हीं पापकर्मों द्वारा मेरे पूर्व शरीरों में जो वीजरूप से संचित हो रहा था, वही यह आपके वियोग का दु:ख आज मुझे प्राप्त हुआ है। महाराज ! मैं दु:ख में डूबी हुई हूं, अत: आज से आपके दर्शन की इच्‍छा रखकर मैं कुश के बिछौने पर सोऊंगी। नरश्रेष्ठ नरेश्‍वर ! करुण विलाप करती हुई मुझ दीन-दुखिया अबला को आज अपना दर्शन और कर्तव्‍य का आदेश दीजिये। कुन्‍ती ने कहा- महाराज ! इस प्रकार जब राजा के शव का आलिंगन करके वह बार-बार अनेक प्रकार से विलाप करने लगी, तब आकाशवाणी बोली- ‘भद्रे ! उठो और जाओ, इस समय मैं तुम्‍हें वर देता हूं। चारूहासिनि ! मैं तुम्‍हारे गर्भ से कई कई पुत्रों को जन्‍म दूंगा। ‘बरारोहे ! तुम ॠतुस्‍नाता होने पर चतुर्दशी या अष्टमी की रात में अपनी शय्‍या पर मेरे इस शव के साथ सो जाना’। आकाशवाणी के यों कहने पर पुत्र की इच्‍छा रखने वाली पतिव्रता भद्रादेवी ने पति की पूर्वोक्त आज्ञा का अक्षरश: पालन किया। भरतश्रेष्ठ ! रानी ने उस शव के द्वारा सात पुत्र उत्‍पन्न किये, जिनमें तीन शाल्‍वदेश के और चार मद्रदेश के शासक हुए। भरतवंशशिरोमणे ! इसी प्रकार आज भी मेरे गर्भ से मानसिक संकल्‍प द्वारा अनेक पुत्र उत्‍पन्न कर सकते है; क्‍योंकि आप तपस्‍या और योगबल से सम्‍पन्न हैं।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।