महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 18 श्लोक 1-18
अष्टादश (18) अध्याय: भीष्म पर्व (श्रीमद्भगवद्गीता पर्व)
कौरव सेना का कोलाहल तथा भीष्म के रक्षकों को वर्णन
संजय कहते हैं-महाराज! तदनंतर दो ही घड़ी में युद्ध की इच्छा रखने वाला योद्धाओं का भयंकर कोलाहल सुनायी देने लगा, जो हृदय कंपा देने वाला था। शंख और दुंदुभियों के घोष; गजराजाओं की गर्जना तथा रथों के पहियों की घरघराहट से सारी पृथ्वी विदीर्ण-सी हो रही थी। घोड़ों के हींसने और योद्धाओं के गर्जने के शब्दों से एक ही क्षण में वहां पृथ्वी और आकाश का सारा प्रदेश गूंज उठा। दुर्धर्ष नरेश! आपके पुत्रों और पाण्डवों की सेनाएं एक-दूसरी के निकट आने पर कांप उठी। उस रणक्षेत्र में स्वर्णभूषित रथ और हाथी बिजलियों से युक्त मेघों के समान सुशोभित दिखायी देते थे। नरेश्र्वर! आपकी सेना के नाना प्रकार के ध्वज और सोने के अङ्गद (बाजूबंद) पहने हुए सैनिक प्रज्वलित अग्नि के समान प्रकाशित हो रहे थे। भारत! अपनी और शत्रु की सेना के चमकीले ध्वज इन्द्र-भवन में फहराने वाले देवेन्द्र के ध्वजों के समान दिखायी देते थे। अग्नि और सूर्य के समान कांतिमान् काञ्चनमय कवच धारण किये वीर सैनिक अग्नि और सूर्य के ही तुल्य प्रकाशित दीख रहे थे। राजन्! कौरवपक्ष के श्रेष्ठ योद्धा विचित्र आयुध और धनुष धारण किये बड़ी शोभा पा रहे थे। उनके विचित्र आयुध ऊपर की ओर उठे हुए थे। उन्होंने हाथों में दस्ताने पहन रक्खे थे और उनकी पताकाएं आकाश में फहरा रही थीं। सेना के मुहाने पर खड़े हुए, वृषभ के समान विशाल नेत्रों-वाले वे महाधनुर्धर वीर बड़ी शोभा पा रहे थे। नरेश्र्वर! भीष्म्जी के पृष्ठभाग की रक्षा आपके पुत्र दु:शासन दुर्विषह, दुर्मुख, दु:सह विविंशति, चित्रसेन, महारथी विकर्ण, सत्य-व्रत, पुरूमित्र, जय, भूरिश्रवा, शल तथा इनके अनुयायी बीस हजार रथी कर रहे थे। अभीषाह, शूरसेन, शिवि, वसाति, शाल्व, मत्स्य, अम्बष्ठ, त्रिगर्त, केकय, सौवीर, कैतव तथा पूर्व, पश्र्चिम एवं उत्तर प्रदेश के निवासी-इन बारह जनपदों के समस्त शूरवीर अपना शरीर निछावर करने को उद्यत होकर विशाल रथ समुदाय के द्वारा पितामह भीष्म की रक्षा कर रहे थे। दस हजार वेगवान् हाथियोंकी सेना साथ लेकर मगधराज उपर्युक्त रथसेना के पीछे-पीछे चल रहे थे। उस विशाल वाहिनी में रथों के पहियों और हाथियों के पैरों की रक्षा करने वाले सैनिक साठ लाख थे। कुछ पैदल सैनिक, जिनकी संख्या कई लाख थी, हाथ में धनुष, ढाल और तलवार लिये आगे-आगे चल रहे थे। वे नखर (बधनखे) और प्रासद्वारा भी युद्ध करने में कुशल थे। भारत! महाराज! आपके पुत्र की ये ग्यारह अक्षौहिणी सेनाएं यमुना में मिली हुई गङ्गा के समान दिखायी देती थीं।
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