महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 24 श्लोक 1-10

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चतुर्विंश (24) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: चतुर्विंश अध्याय: श्लोक 1-10 का हिन्दी अनुवाद

संजय को युधिष्ठर को उनके प्रश्नो उŸार देते हुए उन्हे राजा धृतराष्ट्र का संदेश सुनाने की प्रतिज्ञा करना

संजय बोला - कुरू श्रेष्ठ पाण्डुनन्दन ! आपने मुझसे जो कुछ कहा है, वह बिल्कुल ठीक है । कौरवो तथा अन्य लोगो के विषय में आप जो कुछ कह रहे है, वह बताता हुँ, सुनिये । तात कुन्तीनन्दन ! आपने जिन श्रेष्ठ कुरू वंशियो के कुशल समाचार पूछ रहे है, वे सभी मनस्वी पुरूष स्वस्थ और सानन्द है । पाण्डव ! धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन के पास जैसे बहुत से पापी रहते है,उसी प्रकार उसके यहाँ साधु स्वभाव वाले वृद्ध पुरूष भी रहते ही है । आप इस बात को सत्य ही समझे । दुर्योधन तो शत्रुओं को भी धन देता है, फिर वह ब्राह्मणो की जीविका का लोप तो कर ही कैसे सकता है । आप लोगो ने दुर्योधन के प्रति द्रोह का भाव नही रक्खा है, तो भी वह आपके प्रति जो क्रूरतापूर्ण व्यवहार करता है - द्रोही पुरूषों के समान ही आचरण करता है, (दुर्योधन के लिये) यह उचित नही । आप जैसे साधु - स्वभाव लोगो से द्वेष करने पर तो पुत्रोसहित राजा धृतराष्ट्र असाधु और मित्र द्रोही समझे जायेगें । अजातशत्रु ! राजा धृतराष्ट्र अपने पुत्रों को आप से द्वेष करने की आज्ञा नही देते य बल्कि आप के प्रति उनके द्रोह की बात सुनकर वे मन ही मन अत्यन्त संतप्त होते तथा शोक किया करते है , क्योंकि वे अपने यहां पधारे हुए ब्राह्मणो से मिलकर सदा उनसे यही सुना करते है कि मित्र द्रोह सब पापो से बढ़ कर है॥४॥ नरदेव ! कौरवगण युद्ध की चर्चा चलने पर आप को तथा वीराग्रणी अर्जुन को भी स्मरण करते है । युद्धकाल में जब दुन्दुभि और शंख की ध्वनि गूंज उठती है, उस समय उन्हे गदापाणि भीमसेन की बहुत याद आती है । समरागण में जिन्हे हराना तो दूर की बात है, विचलित या कम्पित करना भी अत्यन्त कठिन है, जो शत्रुसे ना पर निरन्तर बाणो की वर्षा करते है और संग्राम में सम्पूर्ण दिशाओं में आक्रमण करते है, उन महारथी माद्री कुमार नकुल सहदेव को भी कौरव सदा याद करते है । पाण्डुनन्दन महाराज युधिष्ठर ! मेरा यह विश्वास है कि मनुष्य का भविष्य जब तक वह सामने नही आता, किसी को ज्ञात नही होता य क्योंकि आप जैसे सर्वधर्मसम्पन्न पुरूष भी अत्यन्त भयंकर कलेश में पड़ गये । अजातशत्रो ! संकट में पड़ने पर भी आप ही अपनी बुद्धि से विचार कर इस झगडे की शान्ति के लिये पुनः कोई सरल उपाय ढूंढ निकालिये । पाण्डु के सभी पुत्र इन्द्र के समान पराक्रमी है । वे किसी भी स्वार्थ के लिये कभी भी धर्म का त्याग नही करते । अजात शत्रों ! आप ही इस समस्या को हल कीजिये, जिससे धृतराष्ट्र के सभी पुत्र, पाण्डव सूंजवंशी क्षत्रिय तथा अन्य नरेश, जो आकर सेना की छावनी में टिके हुए है, कल्याण के भागी हो । महाराज युधिष्ठर ! आपके ताऊ धृतराष्ट्र ने रात के समय मुझ से आप लोगो के लिये जो संदेश कहा था, उसे आप मन्त्रियो और पुरोहित मेरे इन शब्दो में सुनिये ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के उद्योगपर्व के अन्तर्गत सेनोद्योगपर्व में पुरोहित प्रस्थान विषयक चैबीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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