महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 25 श्लोक 1-11

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०६:३१, ७ अगस्त २०१५ का अवतरण ('==पंचविंश (25) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)== <div sty...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

पंचविंश (25) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: पंचविंश अध्याय: श्लोक 1-11 का हिन्दी अनुवाद

संजय का युधिष्ठर को धृतराष्ट्र का संदेश सुनाना एवं अपनी ओर से भी शान्ति के लिये पार्थना करना

युधिष्ठर बोले - गवल्गणकुमार सूतपुत्र संजय ! यहां पाण्डव, संृजय भगवान् श्रीकृष्ण, सात्यकि तथा राजा विराट - सब एकत्र हुए है । राजा धृतराष्ट्र ने तुम्हारे द्वारा जो संदेश भेजा है, उसे कहो । संजय बोला - मै अजातशत्रु युघिष्ठर, भीमसेन, अर्जुन, नकुल, सहदेव भगवान् श्रीकृष्ण, सात्यकि, चेकिस्तान, विराट पांचाल देश के बूढे नरेश द्रुपद तथा उनके पुत्र वृषतवंशी धृष्ठप्रद्यम्न को भी आमन्त्रित करता हूँ । मै कौरवों की भलाई चाहता हुआ जो कुछ कह रहा हूँ, मेरी उस वाणी को आप सब लोग सुनें । राजा धृतराष्ट्र शान्ति का आदर करते है (युद्ध नहीं चाहते ) उन्होंने बड़ी उतावलो के साथ मेरे लिये शीघ्रता पूर्वक रथ तैयार कराया और मुझे यहां भेजा । मै चाहता हूँ कि भाई, पुत्र तथा स्वजनो सहित राजा धृतराष्ट्र का यह शान्ति संदेश पाण्डवों को रूचिकर प्रतीत हो और दोनों पक्षो में सन्धि स्थापित हो जाय । कुन्ती के पुत्रों ! आप लोग अपने दिव्य शरीर, दयालु एवं कोमल स्वभाव और सरलता आदि गुणों तथा सम्पूर्ण धर्मो से युक्त है । आप लोगों का उŸाम कुल में जन्म हुआ है । आप लोगों में कू्ररता सर्वथा अभाव है । आप लोग उदार, लज्जाशील कर्मो के परिणाम को जानने वाले है । भयंकर सैन्य संग्रह करने वाले पाण्डवों ! आप लोगो में ऐसा सत्वगुण भरा है कि आपके द्वारा कोई नीच कर्म बन ही नहीं सकता । यदि आप लोगों में कोई दोष हो तो वह सफेद वस्त्र में काले दाग की भांति चमक उठता (छिप नही सकता)। जिसमें सब का विनाश दिखयी देता है, जिससे पूर्णतः पाप का उदय होता है, जो नरक हेतु है, जिसके अन्त में अभाव ही हाथ लगता है जिसमें जय तथा पराजय दोनों समान है, उस युद्ध जैसे कठोर कर्म के लिये कौन समझदार मनुष्य कभी उद्योग करेगा । जिन्होंने जाति और कुटुम्ब के हितकर कार्यो का साधन किया है, वे धन्य है । वे ही पुत्र, मित्र तथा बान्धव कहलाने योग्य है । कौरवों को चाहिये िकवे निन्दित जीवन का परित्याग कर दे, कौरवकुल का अभ्युदय अवश्यभावी हो । कुन्ती कुमारो ! यदि आपलोग समस्त कौरवों को निश्चित रूप से अपना शत्रु मानकर उन्हें दण्ड देगे, कैद करेगे अथवा उनका वध कर डालेगे तो उस दशा में जो आपका जीवन होगा, वह आपके द्वारा कुटुम्बीजनो का वध होने के कारण अच्छा नही समझा जायेगा । वह निन्दित जीवन तो मृत्यु के समान ही होगा । भगवान् श्रीकृष्ण, चेकितान और सात्यकि आपलोगो के सहायक है । आप लोग महाराज दु्रपद के बाहुबलि से सुरक्षित है । ऐसी दशा में इन्द्र सहित समस्त देवताओं को अपने सहायक रूप में पाकर भी कौन सा ऐसा मनुष्य होगा, जो आप लोगो को जीतने का साहस करेगा । राजन ! इसी प्रकार द्रोणाचार्य, भीष्म अश्वत्थामा, शल्य, कृपाचार्य आदि वीरो तथा अन्य राजाओं सहित कर्ण के द्वारा सुरक्षित कौरवो को युद्व में जीतने का साहस कौन कर सकता है ।



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।