महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 73 श्लोक 18-30

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त्रिसप्ततितम (73) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: त्रिसप्ततितम अध्याय: श्लोक 18-30 का हिन्दी अनुवाद

शुक्र। जो जुए में धन जीतकर उसके द्वारा गायों को खरीदता है और उनका दान करता है वह दस हजार दिव्य वर्षों तक उसके पुण्य फल का उपभोग करता है। जो पैतृक संपत्ति से न्याय पूर्वक प्राप्त की हुई गौओं का दान करता है, ऐसे दाताओं के लिये वे गौऐं अक्षय फल देने वाली हो जाती हैं। शचीपते। जो पुरूष दान में गौऐं लेकर फिर शुद्व हृदय से उनका दान कर देता है, उसे भी यहां अक्षय एवं अटल लोकों की प्राप्ति होती है- यह निश्चित रूप से समझ लो । जो जन्म से ही सदा सत्य बोलता, इन्द्रियों को काबू में रखता, गुरूजनों तथा ब्राह्माणों की कठोर बातों को भी सह लेता और क्षमाशील होता है, उसकी गौओं के समान गति होती है। अर्थात वह गोलोक में जाता है।शचीपते शक्र।ब्राह्माण के प्रति कभी कुवाच्य नहीं बोलना चाहिये और गौओं के प्रति कभी मन से भी द्रोह का भाव नहीं रखना चहिये। जो ब्राह्माण गौओं के समान वृति से रहता है और गौओं के लिये घास आदि की व्यवस्था करता है साथ ही सत्य और धर्म में तत्पर रहता है, उसे प्राप्त होने वाले फल का वर्णन सुनो। वह यदि एक गौ का भी दान करे तो उसे एक हजार गोदान के समान फल मिलता है।यदि क्षत्रीय भी इन गुणों से युक्त होता है तो उसे भी ब्राह्माण के समान ही (गोदान का ) फल मिलता है। इस बात को अच्छी तरह सुन लो। उसकी (दान दी हुई) गौ भीब्राह्माण की गौ के तुल्य फल देने वाली होती है। यह धर्मात्माओं को निश्‍चय है। यदि वैश्‍य में भी उपयुक्त गुण हों तो उसे भी एक गोदान करने पर ब्राह्माण की अपेक्षा (आधे भाग) पांच सौ गौओं के दान का फल मिलता है और विनयशील शूद्र को ब्राह्माण के चैथाई भाग अर्थात ढाई सो गौओं के दान का फल प्राप्त होता है । जो पुरूष सदा सावधान रहकर इस उपयुक्त धर्म का पालन करता है तथा जो सत्यवादी, गुरूसेवापरायण, दक्ष, क्षमाशील, देवभक्त, शान्तचित्त, पवित्र, ज्ञानवान, धर्मात्मा और अहंकार शून्य होता है वह यदि पूर्वोक्त विधि से ब्राह्माण को दूध देने वाली गाय का दान करे तो उसे महान फल की प्राप्ति होती है। इन्द्र। जो सदा एक समय भोजन करके नित्य गोदान करता है, सत्य में स्थित होता है, गुरू की सेवा और वेदों का स्वाध्याय करता है, जिसके मन में गौओं के प्रति भक्ति है, जो गौओं का दान देकर प्रसन्न होता है तथा जन्म से ही गौओं को प्रणाम करता है, उसको मिलने वाले इस फल का वर्णन सुनो। राजसूय यज्ञ का अनुष्ठान करने से जिस फल की प्राप्ति होती है तथा बहुत से सुवर्ण की दक्षणा देकर यज्ञ करने से जो फल मिलता है, उपर्युक्त मनुष्य भी उसके समान ही उत्तम फल का भागी होता है। यह सभी सिद्व-संत-महात्मा एवं ऋषियों का कथन है।जो गौ सेवा का व्रत लेकर प्रतिदिन भोजन से पहले गौओं को गौ ग्रास अर्पण करता है तथा शान्त एवं निर्लोभ होकर सदा सत्य का पालन करता रहता है, वह सत्य शील पुरूष प्रतिवर्ष एक सहस्त्र गोदान करने पुण्य का भागी होता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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