महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 246 श्लोक 16-23

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पञ्चचत्‍वारिंशदधिकद्विशततम (246) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: पञ्चचत्‍वारिंशदधिकद्विशततम श्लोक 16-23 का हिन्दी अनुवाद

बेटा ! व्रतधारी स्‍त्रातकों को ही तुम इस मोक्ष शास्‍त्र का उपदेश करना । जिसका मन शान्‍त नहीं है, जिसकी इन्द्रियॉ वश में नहीं है तथा जो तपस्‍वी नहीं है, उसे इस ज्ञान का उपदेश नहीं करना चाहिये। जो वेद का विद्वान् न हो, अनुगत भक्त न हो, दोषदृष्टि से रहित न हो, सरल स्‍वभाव का नहो और आज्ञाकारी न हो तथा तर्कशास्‍त्र की आलोचना करते-करते जिसका हृदय दग्‍ध रस शून्‍य हो गया हो और जो दूसरों की चुगली खाता हो-ऐसे लोगों को इस ज्ञान का उपदेश देना उचित नहीं । जो तत्‍वज्ञान की अभिलाषा रखनेवाला, स्‍पृहणीय गुणों से युक्त, शान्‍तचित्त, तपस्‍वी एवं अनुगत शिष्‍य हो अथवा इन्‍हीं गुणों से युक्‍त प्रिय पुत्र हो, उसी को इस गूढ़ रहस्‍यमय धर्म का उपदेश देना चाहिये; दूसरे किसी को किसी प्रकार भी नहीं । यदि कोई मनुष्‍य रत्‍नों से भरी हुई यह सम्‍पूर्ण पृथ्‍वी देनेलगे तो भी तत्‍वेत्ता पुरूष यही समझे कि इस सारे धन की अपेक्षा यह ज्ञान ही श्रेष्‍ठ है। बेटा ! तुम मुझसे जो प्रश्‍न कर रहे हो, उसके अनुसार मैं इससे भी गूढ़तर अर्थवाले अलौकिक अध्‍यात्‍मान का उपदेश करूँगा, जिसे म‍हर्षियों ने प्रत्‍यक्ष अनुभव किया है और जिसका वेदान्‍तशास्‍त्र उपनिषदों में गान किया गया है। पुत्र ! तुम्‍हारे मन में जो वस्‍तु सर्वश्रेष्‍ठ जान पड़ती हो तथा जिसके विषय में तुम्‍हें कहीं संशय हो रहा हो, उसे पूछों और उसके उत्तर में मैं जो कुछ तुम्‍हारे सामने कहॅू, उसे सुनो ! बोलो, मैं फिर तुम्‍हें किस विषय का उपदेश करूँ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्‍तर्गत मोक्षधर्मपर्व में शुकदेव का अनुप्रश्‍नविषयक दौ सो छियालीसवॉ अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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