महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 257 श्लोक 18-22

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सप्‍तपञ्चाशदधिकद्विशततम (257) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: चतुश्चत्वारिंशदधिकद्विशततम श्लोक 18-22 का हिन्दी अनुवाद

भूपाल ! तब लोकों के आदिकारण भगवान् ब्रह्राने उसे ‘मृत्‍यु‘ कहकर पुकारा और निकट बुलाकर कहा-‘तुम इन प्रजाओं का समय-समय पर विनाश करती रहो। ‘मैंने प्रजा के संहार की भावना से रोष में भरकर तुम्‍हारा चिन्‍तन किया था; इसलिये तुम मूढ़ और विद्वानों सहित सम्‍पूर्ण प्रजाओं का संहार करो। कामिनि ! तुम मेरे आदेश से सामान्‍यत: सारी प्रजा का संहार करो । इससे तुम्‍हें परम कल्‍याण की प्राप्ति होगी’। ब्रह्राजी के ऐसा कहनेपर कमलों की माला से अलंकृत नवयौवना मृत्‍यु देवी नेत्रों से ऑसू बहाती हुई दुखी हो बड़ी चिन्‍ता में पड़ गयी। तब जनेश्‍वर ब्रह्राजी ने मानवों के हित के लिये अपने दोनों हाथों में मृत्‍यु के ऑसू ले लिये । फिर मृत्‍यु ने उनसे इस प्रकार प्रार्थना की।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्व के अन्‍तर्गत मोक्षधर्मपर्व में मृत्‍यु और प्रजापति के संवादका उपक्रमविषक दो सौ सत्तावनवॉ अध्‍याय पूरा हुआ


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