महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 50 श्लोक 34-50

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पञ्चाशत्‍तम (50) अध्‍याय: उद्योग पर्व (यानसंधि पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: पञ्चाशत्‍तम अध्याय: श्लोक 34-50 का हिन्दी अनुवाद

भरतश्रेष्‍ठ! पूर्वकाल में काशिराज की जिस सती-साघ्‍वी कन्या अम्बाने भीष्‍मजी के वध की इच्छा से घोर तपस्या की थी, वही मृत्यु के पश्र्चात् पाञ्चालराज द्रुपद की पुत्री होकर उत्पन्न हुई, परंतु दैववश वह फिर पुरूष हो गयी। वह वीर पाञ्चाल कुमार स्त्री और पुरूष दोनों शरीरों के गुण और अवगुण को जानता है । कौरवो! वह द्रुपद कुमार युद्ध में उन्‍मत्‍त होकर लड़ने-वाला है। उसीने कलि्ङ्गदेशीय क्षत्रियों को पराजित किया था। उस अस्‍त्रवेत्‍ता वीर का नाम शिखण्‍डी है, जिसके बल पर पाण्‍डवों ने आप लोगों से युद्ध की तैयारी की है । जिसे स्‍थूणाकर्ण यश ने पुरूष बना दिया था, भीष्‍म के वध की इच्‍छा रखने वाले उस भयंकर एवं महाधनुधर शिखण्‍डी के बलपर पाण्‍डव आप से युद्ध करने को तैयार हैं । के‍कयदेश के पांच राजकुमार जो परस्‍पर भाई हैं, सदा कवच बांधे युद्ध के लिये उद्यत रह‍ते हैं। वे महान् धनुर्धर शूरवीर हैं। उनके बल पर पाण्‍डवों ने आप लोगों से युद्ध की तैयारी की है । जिनकी बड़ी-बड़ी भुजाएं हैं, जो बड़ी शीघ्रता से अस्‍त्र-संचालन करते हैं तथा जो धीर एवं सत्‍यपराक्रमी हैं, उन वृष्णिवीर सात्‍यकिके साथ आप लोगों का संग्राम होने वाला है । जो अज्ञातवास के समय महात्‍मा पाण्‍डवों के आश्रयदाता थे, उन राजा विराट के साथ भी आप लोगों का युद्ध होगा । काशि देश के अधिपति महारथी नरेश जो वाराणसी पुरी में रहते हैं, पाण्‍डवों की ओर से युद्ध करने को तैयार हैं । उनको साथ लेकर पाण्‍डव आप लोगों पर आक्रमण करने के लिये तैयार है । द्रौपदी के महामना पुत्र देखने में बालक होने पर भी समर-भूमि में दुर्जय है। उन्‍हें छेड़ना विषधर सर्पों को छू लेने के समान है। उनके बलपर भी पाण्‍डव आप लोगों से भिड़ने की तैयारी कर रहे हैं । जो पराक्रम में भगवान् श्रीकृष्‍ण के समान ओर इन्द्रिय संयम में युधिष्ठिर के तुल्‍य हैं, उन अभिमन्‍यु को साथ लेकर पाण्‍डवों ने आप लोगों से युद्ध की तैयारी की है । जिसके पराक्रम की कहीं तुलना नहीं है, शिशुपाल का वह महारथी पुत्र महायशस्‍वी धृष्‍टकेतु समर भूमि में कुपित होनेपर शत्रुओं के लिये दु:सह हो उठता है। उस चेदिराज के साथ पाण्‍डव लोग आपपर आक्रमण करने की तैयारी कर रहे हैं। उसने एक अक्षौहिणी सेना के साथ आकर पाण्‍डवों का पक्ष ग्रहण किया है । जैसे इन्‍द्र देवताओं के आश्रयदाता हैं, उसी प्रकार जो पाण्‍डवों को शरण देने वाले हैं, उन भगवान् वासुदेव के साथ पाण्‍डवों ने आप पर आक्रमण करने की तैयारी की है । भरतश्रेष्‍ठ ! चेदिराज के भाई शरभ (अपने अनुज) करकर्ष-के साथ पाण्‍डवों की सहायता के लिये आये हैं।उन दोनों को साथ लेकर उन्‍होंने आपसे युद्ध करने का उद्योग किया है । जरासंधपुत्र सहदेव और जयत्‍सेन दोनों युद्ध में अपना सानी नहीं रखते हैं। वे दोनों मागध वीर पाण्‍डवों सहायता के लिये आकर डटे हुए हैं । महातेजस्‍वी राजा द्रुपद विशाल सेना के साथ आये हैं और पाण्‍डवों के लिये अपने शरीर और प्राणोंकी परवा न करके युद्ध करने के लिये उद्यत हैं । ये तथा और भी बहुत से पूर्व तथा उत्‍तर दिशाओं में रहने वाले नरेश सैकड़ों की संख्‍या में आकर वहां डटे हुए हैं, जिनका आश्रम लेकर महाराज युधिष्ठिर युद्ध के लिये तैयार हैं ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत यानसंधिपर्व में संजयवाक्‍यविषयक पचासवां अध्‍याय पूरा हुआ ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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