श्रीमद्भागवत महापुराण द्वितीय स्कन्ध अध्याय 7 श्लोक 26-33

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द्वितीय स्कन्ध: सप्तम अध्यायः (7)

श्रीमद्भागवत महापुराण: द्वितीय स्कन्ध: सप्तमअध्यायः श्लोक 26-33 का हिन्दी अनुवाद
भगवान् के लीलावतारों की कथा

जिस समय झुंड-के-झुंड दैत्य पृथ्वी को रौंद डालेंगे उस समय उसका भार उतारने के लिये भगवान् अपने सफ़ेद और काले केश से बलराम और श्रीकृष्ण के रूप में कलावतार ग्रहण करेंगे।[१]वे अपनी महिमा को प्रकट करने वाले इतने अद्भुत चरित्र करेंगे कि संसार के मनुष्य उनकी लीलाओं का रहस्य बिलकुल नहीं समझ सकेंगे । बचपन में ही पूतना के प्राण हर लेना, तीन महीने की अवस्था में पैर उछालकर बड़ा भारी छकड़ा उलट देना और घुटनों के बल चलते-चलते आकाश को छूने वाले यमलार्जुन वृक्षों के बीच में जाकर उन्हें उखाड़ डालना—ये सब ऐसे कर्म हैं, जिन्हें भगवान् के सिवा और कोई नहीं कर सकता । जब कालियनाग के विष से दूषित हुआ यमुना-जल पीकर बछड़े और गोप बालक मर जायँगे, तब वे अपनी सुधामयी कृपा-दृष्टि की वर्षा से ही उन्हें जीवित कर देंगे और यमुना-जल शुद्ध करने के लिये वे उसमें विहार करेंगे तथा विष की शक्ति से जीभ लपलपाते हुए कालियनाग को वहाँ से निकाल देंगे । उसी दिन रात को जब सब लोग वहीं यमुना-तट पर सो जायँगे और दावाग्नि से आस-पास का मूँज का वन चारों ओर से जलने लगेगा, तब बलरामजी के साथ वे प्राण संकट में पड़े हुए व्रजवासियों को उनकी आँखें बंद कराकर उस अग्नि से बचा लेंगे। उनकी यह लीला भी अलौंकिक ही होगी। उनकी शक्ति वास्तव में अचिन्त्य है । उनकी माता उन्हें बाँधने के लिये जो-जो रस्सी लायेंगी वही उनके उदर में पूरी नहीं पड़ेगी, दो अंगुल छोटी ही रह जायगी। तथा जँभाई लेते समय श्रीकृष्ण के मुख में चौदहों भुवन देखकर पहले तो यशोदा भयभीत हो जायँगी, परन्तु फिर वे सँभल जायँगी । वे नन्दबाबा को अजगर के भय से और वरुण के पाश से छुडायेंगे। मय दानव का पुत्र व्योमासुर जब गोपबालों को पहाड़ की गुफाओं में बन्द कर देगा, तब वे उन्हें भी वहाँ से बचा लायेंगे। गोकुल के लोगों को, जो दिन भर तो काम-धंधों में व्याकुल रहते हैं और रात को अत्यन्त थककर सो जाते हैं, साधानाहीन होने पर भी, वे अपने परमधाम में ले जायँगे । निष्पाप नारद! जब श्रीकृष्ण की सलाह से गोप लोग इन्द्र का यज्ञ बंद कर देंगे, तब इन्द्र व्रजभूमि का नाश करने के लिये चारों ओर से मूसलधार वर्षा करने लगेंगे। उससे उनकी तथा उनके पशुओं की रक्षा करने के लिये भगवान् कृपापरवश हो सात वर्ष की अवस्था में ही सात दिनों तक गोवर्धन पर्वत को एक ही हाथ से छत्रकपुष्प (कुकुरमुत्ते)—की तरह खेल-खेल में ही धारण किये रहेंगे । वृन्दावन में विहार करते हुए रास करने की इच्छा से वे रात के समय, जब चन्द्रमा की उज्ज्वल चाँदनी चारों ओर छिटक रही होगी, अपनी बाँसुरी पर मधुर संगीत की लम्बी तान छेड़ेंगे। उससे प्रेमविवश होकर आयी हुई गोपियों को जब कुबेर का सेवक शंखचूड़ हरण करेगा, तब वे उसका सिर उतार लेंगे ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. केशों के अवतार कहने का अभिप्राय यह है कि पृथ्वी का भार उतारने के लिये भगवान् का एक केश ही काफी है इसके अतिरिक्त श्रीबलरामजी और श्रीकृष्ण के वर्णों की सूचना देने के लिये भी उन्हें क्रमशः सफ़ेद और काले केशों का अवतार कहा गया है। वस्तुतः श्रीकृष्ण तो पूर्ण पुरुष स्वयं भगवान् हैं—कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्।

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