महाभारत वन पर्व अध्याय 55 श्लोक 1-17

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त्रिपञ्चाशत्तम (53) अध्‍याय: वन पर्व (नलोपाख्यानपर्व)

महाभारत: वन पर्व: त्रिपञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद


इतने ही में उनकी दृष्टि कुछ हंसोपर पड़ी, जो सुवर्णमय पंखों से विभूषित थे। वे उसी उपवन में विचर रह थे। राजा ने उनमें से एक हंस को पकड़ लिया। तब आकाशचारी हंस ने उस समय नल से कहा-राजन्! आप मुझे न मारें। मैं आपका प्रिय कार्य करूंगा। ‘निषधनरेश ! मैं दमयन्ती के निकट आपकी ऐसी प्रशंसा करूंगा, जिससे वह आपके सिवा दूसरे किसी पुरूष को मन में कभी स्थान न देगी’। हंस के ऐसा कहने पर राजा नल ने उसे छोड़ दिया। फिर वे हंस वहां से उड़कर विदर्भ देश में गये। तब विदर्भनगरी में जाकर वे सभी हंस दमयन्ती के निकट उतरे। दमयन्ती ने भी उन अद्भुत पक्षियों को देखा। सखियों से घिरी हुई राजकुमारी दमयन्ती उन अपूर्व पक्षियों को देखकर बहुत प्रसन्न हुई और तुरन्त ही उन्हें पकड़ने की चेष्टा करने लगी। तब हंस उस प्रमदावन में सब ओर विचरण करने लगे। उस समय सभी राजकन्याओं ने एक-एक करके उन सभी हंसों का पीछा किया। दमयन्ती जिस हंस के निकट दौड़ रही थी, उसने उससे मानवी वाणी में कहा- ‘राजकुमारी दमयन्ती ! सुनो, निषधदेश में नल नामसे प्रसिद्ध एक राजा हैं, जो अश्विनीकुमारों के समान सुन्दर हैं। मनुष्यांे में तो कोई उनके समान है ही नहीं। ‘सुन्दरि ! रूप दृष्टि से तो वे मानों स्वयं मूर्तिमान् कामदेव-से ही प्रतीत होते हैं। सुमध्यमे ! यदि तुम उनकी पत्नी हो जाओ तो तुम्हारा जन्म और यह मनोहर रूप सफल हो जाय। हमलोगों ने देवता, गन्धर्व, मनुष्य, नाग तथा राक्षसों को भी देखा है; परनतु तुम्हारी दृष्टि मंे अबतक उनके जैसा कोई भी पुरूष पहले कभी नहीं आया है। तुम रमणियों में रत्नस्वरूपा हो और नलपुरूषों के मुकुटमणि हैं। यदि किसी विशिष्ट नारी का विशिष्ट पुरूष के साथ संयोग हो तो वह विशेष गुणकारी होता है। राजन् हंसक इस प्रकार कहने पर दमयन्ती ने उससे कहा-‘पक्षिराज ! तुम नल के निकट भी ऐसी ही बात कहना’। राजन् ! विदर्भराजकुमारी दमयन्ती से ‘तथास्तु’ कहकर वह हंस पुनः निषधदेश में आया और उसने नल से सब बातें निवेदन कीं।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत नलोपाख्यानपर्व में हंसदमयन्तीसंवादविषयक तिरपनवां अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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