महाभारत वन पर्व अध्याय 55 श्लोक 18-25
त्रिपञ्चाशत्तम (55) अध्याय: वन पर्व (नलोपाख्यानपर्व)
नल के तेज से प्रतिहत हुई वे लजीली सुन्दरियां उनसे कुछ बोल ही न सकी। तब मुसकराकर बातचीत करनेवाली दमयन्ती ने विस्मित होकर मुस्कराते हुए वीर नल से इस प्रकार पूछा-‘आप कौन हैं ? आपके सम्पूर्ण अंग निर्दोष एवं परम सुन्दर हैं। आप मेरे हृदय की कामाग्नि बड़ा रहे हैं। निष्पाप वीर ! आप देवताओं के समान यहां आ पहुंचे हैं। मैं आपका परिचय पाना चाहती हूं। आपका इस रनिवास में आना कैसे सम्भव हुआ ? आपको किसी ने देखा कैसे नहीं ? मेरा यह महल अत्यन्त सुरक्षित है और यहां के राजा का शासन बड़ा कठोर है-वे अपराधियों को बड़ा कठोर दण्ड देते हैं।’ विदर्भराजकुमारी के ऐसा पूछने पर नल ने इस प्रकार उत्तर दिया। नल ने कहा-कल्याणि ! तुम मुझे नल समझो। मैं देवताओं का दूत बनकर यहां आया हूं। इन्द्र, अग्नि, वरूण और उनमें से किसी एक को अपना पति चुन लो। उन्हीं देवताओं के प्रभाव से मैं इस महल के भीतर आया हूं और मुझे कोई न देख सका है। भीतर प्रवेश करते समय न तो किसी ने मुझे देखा है और न रोका ही है। भद्रे ! इसीलिये श्रेष्ठ देवताओं ने मुझे यहां भेजा है। शुभे इसे सुनकर तुम्हारी जैसी इच्छा हो, वैसा निश्चय करो।
« पीछे | आगे » |