महाभारत वन पर्व अध्याय 62 श्लोक 19-29

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द्विषष्टितम (62) अध्‍याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)

महाभारत: वन पर्व: द्विषष्टितम अध्याय: श्लोक 19-29 का हिन्दी अनुवाद

उसी से दमयन्ती का आधा वस्त्र काटकर परंतप नल ने उसके द्वारा अपना शरीर ढंक लिया और अचेत सोती हुई विदर्भराजकुमारी दमयन्ती को वहीं छोड़कर वे शीघ्रता से चले गये। कुछ दूर जाने पर उनके हृदय का विचार पलट गया और वे पुनः उसी सभाभवन में लौट आये। वहां उस समय दमयन्ती को देखकर निषधनरेश नल फूट-फूटकर रोने लगे। (वे विलाप करते हुए कहने लगे-) ‘पहले जिस मेरी प्रियतमा दमयन्ती को वायु तथा सूर्य देवता भी नहीं देख पाते थे, वहीं इस धर्मशाले में भूमि पर अनार्थ की भांति सा रही है। ‘यह मनोहर हास्यवाली सुन्दरी वस्त्र के आधे टुकड़े से लिपटी हुई सो रही है। जब इसकी नीद खुलेगी, तब पगली-सी होकर न जाने यह कैसी दशा को पहुंच जायगी। ‘यह भयंकर वन हिसंक पशुओं और सर्पो से भरा है। मुझसे बिछुड़कर शत्रुलक्षण सती दमयन्ती अकेले इस वन में कैसे विचरण करेगी ? ‘महाभागे ! तुम धर्म से आवृत हो, आदित्य, वसु, रूद्र, अश्विनीकुमार और मरूद्रण-ये सब देवता तुम्हारी रक्षा करें’। इस भूतलपर रूप-सौन्दर्य में जिसकी समानता करनेवाली दूसरी कोई स्त्री नहीं थी, उसी अपनी प्यारी पत्नी दमयन्ती के प्रति इस प्रकार कहकर राजा नल वहां से उठे और चल दिये। उस समय कलिने इनकी विवेकशक्ति हर ली थी। राजा नल को एक ओर कलियुग खींच रहा था और दूसरी और दमयन्ती सौहार्द । अतः वह बार बार जाकर फिर उस धर्मशाला में ही लौट आते थे। उस समय दुखी राजा नल का हृदय मानो दुविधा में पड़ गया था। जैसे झूला बार-बार नीचे ऊपर आता जाता रहता है उसी प्रकार उनका हृदय कभी बाहर जाता, कभी सभाभवन में लौट आता था। अन्त में कलियुग ने प्रबल आकर्षण किया, जिससे मोहित होकर राजा नल बहुत देरतक करूण विलाप करके अपनी सोती हुई पत्नी को छोड़कर शीघ्रता से चले गये। कलियुग के स्पर्श से उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो गयी थी; अतः वे अत्यन्त दुखी हो विभिन्न बातों का विचार करते हुए उन सूने वन में अपनी पत्नी को अकेली छोड़कर चल दिये।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वन पर्व के अन्तर्गत नलोपाख्यानपर्व में दमयन्तीपरित्यागविषयक बासठवां अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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