महाभारत आदि पर्व अध्याय 139 श्लोक 26-41

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एकोनचत्‍वारिंशदधिकशततम (139) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: >एकोनचत्‍वारिंशदधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 26-41 का हिन्दी अनुवाद

एक वन में कोई बड़ा बुद्धिमान् और स्‍वार्थ साधने में कुशल गीदड़ अपने चार मित्रों – बाघ, चूहा, भेड़िया, और नेवले के साथ निवास करता था। एक दिन उन सबने हरिणों के एक सरदार को देखा, जो बड़ा बलवान् था। वे सब उसे पकड़ने में सफल न हो सके, अत: सबने मिलकर यह सलाह की । गीदड़ ने कहा- भाई बाघ ! तुमने वन में इस हरिण को मारने के लिये कई बार यत्न किया, परंतु यह बड़े वेग से दौड़ने वाला, जबान और बुद्धिमान् है, इसलिये पकड़ में नहीं आता। मेरी राय है कि जब यह हरिण सो रहा हो, उस समय यह चूहा इसके दोनों पैरों को काट खाये। (फि‍र कटे हुए पैरों से यह उतना तेज नहीं दौड़ सकता।) उस अवस्‍था में बाघ उसे पकड़ ले; फि‍र तो हम सब लोग प्रसन्नचित्त होकर उसे खायेंगे । गीदड़ की यह बात सुनकर सबने सावधान होकर वैसा ही किया। चूहे द्वारा काटे हुए पैरों से लड़खड़ाते हुए मृग को बाघ ने तत्‍काल ही मार डाला । पृथ्‍वी पर हरिण के शरीर को निश्‍चेष्ट पड़ा देख गीदड़ ने कहा- ‘आप लोगों का भला हो। स्नान करके आइये। तब तक मैं इसकी रखवाली करता हूं’ । गीदड़ के कहने से वे (बाघ आदि) सब साथी नदी में (नहाने के लिये ) चले गये। इधर वह गीदड़ किसी चिन्‍ता में निमग्न होकर वहीं खड़ा रहा । इतने में ही महाबली बाघ स्नान करके सबसे पहले वहां लौट आया। आने पर उसने देखा, गीदड़ का चित्त चिन्‍ता से व्‍याकुल हो रहा है । तब बाघ ने पूछा- महामते ! क्‍यों सोच में पड़े हो? हम लोगों में तुम्‍ही सबसे बड़े बुद्धिमान् हो। आज इस हरिण का मांस खाकर हम लोग मौज से घूमें-फिरेंगे । गीदड़ बोला- महाबाहो ! चूहे ने (तुम्‍हारे विषय में) जो बात कही है, उसे तुम मुझसे सुनो। वह कहता था, ‘मृगों के राजा बाघ के बल को धिक्कार है ! आज इस मृग को तो मैंने मारा है । ‘मेरे बाहुबल का आश्रय लेकर आज यह अपनी भूख बुझायेगा।’ उसने इस प्रकार गरज-गरज कर (घमंड भरी) बातें कही हैं, अत: उसकी सहायता से प्राप्त हुए इस भोजन को ग्रहण करना मुझे अच्‍छा नहीं लगता । बाघ ने कहा- यदि वह ऐसी बात कहता है, तब तो उसने इस समय मेरी आंखें खोल दीं- मुझे सचेत कर दिया। आज से मैं अपने ही बाहुबल के भरोस वन जन्‍तुओं का वध किया करूंगा और उन्‍हीं का मांस खाऊंगा । यों कहकर बाघ वन में चला गया। इसी समय चूहा भी (नहा-धोकर ) वहां आ पहुंचा। उसे आया देख गीदड़ ने कहा । गीदड़ बोला- चूहा भाई ! तुम्‍हारा भला हो। नेवले ने यहां जो बात कही है, उसे सुन लो । वह कह रहा था कि ‘बाघ के काटने से इस हरिण का मांस जहरीला हो गया है, मैं तो इसे खाऊंगा नहीं; क्‍योंकि यह मुझे पसंद नहीं है। यदि तुम्‍हारी अनुमति हो तो मैं चूहे को ही खा लूं’।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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