महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 35 श्लोक 69-77
पञ्चत्रिंश(35) अधयाय: उद्योग पर्व (संजययान पर्व)
सज्जन पुरूष पच जानेपर अन्नकी (निष्कलङ्क) यौवन बीत जाने पर स्त्री की, संग्राम जीत लेनेपर शूर की ओर संसारसागर को पार कर लेने पर तपस्वी की प्रशंसा करते हैं। अधर्म से प्राप्त हुए धन के द्वारा जो दोष छिपाया जाता है, वह तो छिपता नहीं; (परंतु दोष छिपाने के कारण) उससे भिन्न और नया दोष प्रकट हो जाता है। अपने मन और इन्द्रियों को वश में करनेवाले शिष्यों के शासक गुरू हैं, दुष्टों के शासक राजा हैं और छिपे-छिपे पाप करनेवालोंके शासक सूर्यपुत्र यमराज हैं। ॠषि, नदी, वंश एवं महात्माओं का स्त्रियों के दुश्र्चरित्रका उत्पत्तिस्थान नहीं जाना जा सकता। राजन्! ब्राह्मणोंकी सेवा-पूजा में संलग्न रहने वाला, दाता, कुटुम्बीजनों के प्रति कोमलताका बर्तावकरनेवाला और शीलवान् राजा चिरकालतक पृथ्वी का पालन करता । शूर, विद्वान् ओर सेवाधर्म को जानने वाले-ये तीन प्रकार के मनुष्य पृथ्वीरूप लता से सुवर्णरूपी पुष्प का संचय करते हैं। भारत! बुद्धि से विचारकर किये हुए कर्म श्रेष्ठ होते हैं, बाहुबल से कियेजाने वाले कर्म मध्यम श्रेणी के हैं,जङ्घासे किये जाने वाले कार्यअधम हैं और भार ढोने का काम महान् अधम है। राजन्! अब आप दुर्योधन, शकुनि, मूर्ख दु:शासन तथा कर्ण पर राज्य का भार रखकर उन्नति कैसे चाहते हैं? भरतश्रेष्ठ! पाण्डव तो सभी उत्तम गुणों से सम्पन्न हैं और आप में पिता का-सा भाव रखकर बर्ताव करते हैं; आप भी उनपर पुत्रभाव रखकर बर्ताव करते हैं; आप भी उनपर पुत्रभाव रखकर उचित बर्ताव कीजिये।
« पीछे | आगे » |