महाभारत वन पर्व अध्याय 153 श्लोक 1-16

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त्रिपञ्चाशदधिकशततम (153) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)

महाभारत: वन पर्व: त्रिपञ्चाशदधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद

क्रोधवश नामक राक्षसोंका भीमसेनसे सरोवरके निकट आनेका कारण पूछना

वैशम्पायनजी कहते हैं-जनमेजय! इस प्रकार आगे बढ़ने पर भीमसेनने कैलास पर्वतके निकट कुबेरभवनके समीप एक रमणीय सरोवर देखा, जिसके आस-पास सुन्दर वनस्थली शोभा पा रही थी। बहुतसे राक्षस उसकी रक्षाके लिये नियुक्त थे। वह सरोवर पर्वतीय झरनोंके जलसे रक्षाके लिये नियुक्त थे। वह सरोवर पर्वतीय झरनोंके जलसे भरा था। वह देखनेमें बहुत बहुत ही सुन्दर, घनी छायासे सुशोभित तथा अनेक प्रकारके वृक्षों और लताओं व्याप्त था। हरे रंगके कमलोंसे वह दिव्य सरोवर ढका हुआ था। उसमें सुवर्णमय कमल लिये थे। वह नाना प्रकार के पक्षियोंसे युक्त था। उसका किनारा बहुत सुन्दर था और उसमें कीचड़ नहीं था। वह सरोवर अत्यन्त रमणीय, सुन्दर जलसे परिपूर्ण, पर्वतीय शिखरोंके झरनोंसे उत्पन्न, देखनेमें विचित्र, लोकके लिये मंगलकारक तथा अद्भूत दृश्यसे सुशोभित था। उस सरोवरमें कुन्तीकुमार पाण्डुपुत्र भीमने अमृतके समान स्वादिष्ट, शीतल, हल्का, शुभकारक और निर्मल जल देखा तथा उसे भरपेट पीया। वह सरोवर दिव्य सौगन्धिक कमलोंसे आवृत तथा रमणीय था। परम सुगन्धित सुवर्णमय कमल उसे ढंके हुए थे। उन कमलोंकी नाल उत्‍तम वैदूर्यमणिमयं थी। वे कमल देखनेमें अत्यन्त विचित्र और मनोरम थे। हंस और कारण्डब आदि पक्षी उन कमलोंको हिलाते रहते थे, जिससे वे निर्मल पराग प्रकट किया करते थे। वह सरोवर राजाधिराज महाबुद्धिमान् कुबेरका क्रीड़ास्थल था। गन्धर्व, अप्सरा और देवता भी उसकी वही प्रशंसा करते थे। दिव्य ऋषि-मुनि, यक्ष, किम्पुरूष, राक्षस और किन्नर उसका सेवन करते थे तथा साक्षात् कुबेरके द्वारा उसके संरक्षणकी व्यवस्था की जाती थी। कुन्तीनन्दन महाबली भीमसेन उस दिव्य सरोवर को देखते ही अत्यन्त प्रसन्न हो गये। महाराज कुबेरके आदेशसे क्रोधवश नामक राक्षस, जिनकी संख्या एक लाख थी, विचित्र आयुध और वेष-भूषासे सुसज्जित हो उसकी रक्षा करते थे। उस समय भयानक पराक्रमी कुन्तीकुमार वीरवर भीम अपने अंगोंमें मृगचर्म लपेटे हुए थे। भुजाओंमें सोनेके अंगद बाजूबंद पहन रखे थे। वे धनुष और गदा आदि आयुधोंसे युक्त थे। उन्होंने कमरमें तलवार बांध रखी थी। वे शत्रुओंका दमन करनेमें समर्थ और निर्भीक थे। उन्हें कमल लेनेकी इच्छासे वहां आते देख वे पहरा देनेवाले राक्षस आपसमें कोलाहल करने लगे। उनमें परस्पर इस प्रकार बातचीत हुई- 'देखो यह नरश्रेष्ठ मृगचर्मसे आच्छादित होनेपर भी हाथमें आयुध लिये हुए है। यह यहां जिस कार्यके लिये आया हैं, उसे पूछो'। तब वे सब राक्षस परम तेजस्वी महाबाहु भीमसेनके पास आकर पूछने लगे-तुम कौन हो ? यह बताओ। 'महामते! तुमने वेश तो मुनियोंकासा धारण कर रखा है; परंतु आयुधोंसे सम्पन्न दिखायी देते हो। तुम किसलिये यहां आये हो ? बताओ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्वके अन्तर्गत तीर्थयात्रामें लोमशतीर्थयात्राके प्रसंगमें सौगन्धिकाहरणिविषयक एक सौ तिरपनवां अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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