महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 62 श्लोक 1-12

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द्विषष्टितम (62) अध्याय: उद्योग पर्व (यानसंधि पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: द्विषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-12 का हिन्दी अनुवाद

कर्णकी आत्‍मप्रशंस, भीष्‍म के द्वारा उस पर आक्षेप, कर्ण का सभा त्‍यागकर जाना और भीष्‍म का उसके प्रति पुन: आक्षेपयुक्‍त वचन कहना वैशम्‍पायनजी कहते हैं-जनमेजय! विचित्रवीर्य-नंदन धृतराष्‍ट्र को पहले की ही भांति कुंतीकुमार अर्जुन के विषय में बारंबार प्रश्‍न करते देख उनकी कोई परवा न करके कर्ण ने कौरव-सभा में दुर्योधन को हर्षित करते हुए कहा -। ‘राजन! मैंने पूर्वकाल में झूठे ही अपने को ब्राह्मण बताकर परशुराम जी से जब ब्रह्माशास्‍स की शिक्षा प्राप्‍त कर ली, तब उन्‍होंने मेरा यथार्थ परिचय जानकर मुझसे इस प्रकार कहा-‘कर्ण-अंत समय आने पर तुम्‍हें इस ब्रह्मास्‍त्र का स्‍मरण नहीं रहेगा। ‘यद्यपि मेरे द्वारा उन महर्षि का महान् अपराध हुआ था, तथापि उन गुरूदेव ने जो मुझे शाप नहीं दिया, यह उनका मेरे ऊपर बहुत बड़ा अनुग्रह है। अन्‍यथा वे प्रचण्‍ड तेजस्‍वी मेरे ऊपर बहुत बड़ा अनुग्रह है। अन्‍यथा वे प्रचण्‍ड तेजस्‍वी महामुनि समुद्रसहित सारी पृथ्‍वी को भी दग्‍ध कर सकते हैं।
‘मैंने अपने पुरूषार्थ तथा सेवा-शुश्रूषा से उनके मन को प्रसन्‍न कर लिया था। वह ब्रह्मास्त्र अब भी मेरे पास है। मेरी आयु भी अभी शेष है; अत: मैं पाण्‍डवों को जीतने में समर्थ हूं। यह सारा भार मुझ पर छोड़ दिया जाय। ‘महर्षि परशुराम का कृपा प्रसाद पाकर मैं पलक मारते-मारते पाञ्चाल, करूष तथा कत्‍स्‍यदेशीय योद्धाओं और कुंतीकुमारों को पुत्र-पोत्रोंसहित मारकर शस्‍त्रद्वारा जीते हुए पुण्‍य-लोकों में जाऊंगा। ‘पितामह भीष्‍म आपके ही पास रहें, आचार्य द्रोण तथा समस्‍त मुख्‍य-मुख्‍य भूपाल भी आपके ही समीप रहें। मैं अपनी प्रधान सेना के साथ जाकर अकेले ही सब कुंतीकमारों-को मार डालुंगा। इसका सारा भार मुझपर रहा’। कर्ण को ऐसी बातें करते देख भीष्‍मजी ने उससे कहा-‘कर्ण! क्‍यों अपनी वीरता की डींग हाक रहा है? जान पड़ता है, काल ने तेरी बुद्धि को ग्रस लिया है। क्‍या तू नहीं जानता कि युद्ध में तुझ प्रधान वीर के मारे जाने पर सारे धृतराष्‍ट्र पुत्र ही मृतप्राय हो जायंगे। ‘श्रीकृष्‍णसहित अर्जुन ने खाण्‍डववन का दाह करते समय जो पराक्रम किया था, उसे सुनकर ही बान्‍धवोंसहित तुझे अपने मन पर काबू रखना उचित था। ‘देवेश्र्वर महात्‍मा भगवान् महेन्‍द्र ने तुझे जो शक्ति प्रदान की है, वह भगवान् केशल के चलाये हुए चक्र से आहत हो समरभूमि में छिन्‍न-भिन्‍न एवं दग्‍ध हो जायेगी। इसे तू अपनी आंखों देख लेगा। ‘तेरे पास जो सर्पमुख बाण प्रकाशित होता है और तू प्रयत्‍नपूर्वक सदा ही पुष्‍पमाला आदि श्रेष्‍ठ उपचारोद्वारा जिसकी पूजा किया करता है, वह पाण्‍डुपुत्र अर्जुन के बाण-समूहों से छिन्‍न-भिन्‍न होकर तेरे साथ ही नष्‍ट हो जायगा। ‘कर्ण! बाणसुर और भौमासुर का वध करने वाले वे वसुदेवनंदन भगवान् श्रीकृष्‍ण किरीटधारी अर्जुन की रक्षा करते हैं, जो तेरे-जैसे तथा तुझसे भी प्रबल शत्रुओं का भयंकर संग्राम में विनाश कर सकते हैं’।

कर्ण बोला-इसमें संदेह नहीं कि वृष्णि कुल के स्‍वामी महात्‍मा श्रीकृष्‍ण का जैसा प्रभाव बताया गया है, वे वैसे ही हैं। बल्कि उससे भी बढ़कर हैं।परंतु मेरे प्रति जो किञ्चित् कटुवचन का प्रयोग किया गया है; उसका परिणाम क्‍या होगा? यह पितामह भीष्‍म मुझसे सुने लें।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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