महाभारत शल्य पर्व अध्याय 61 श्लोक 38-47
एकषष्टितमोअध्यायः (61) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)
परंतु तुम- जैसे अनार्य ने कुटिल मार्ग का आरय लेकर स्वधर्म-पालना में लगे हुए हम लोगों का तथा दूसरे राजाओं का भी वध करवा है । भगवान श्रीकृष्ण बोले- गान्धारीनन्दन! तुमने पाप के रास्ते पर पैर रखा था; इसीलिये तुम भाई, पुत्र, बान्धव, सेवक और सुहृद्गणों सहित मारे गये हो। वीर भीष्म और द्रोणाचार्य तुम्हारे दुष्कर्मों से ही मारे गये हैं। कर्ण भी तुम्हारे स्वभाव का ही अनुसरण करने वाला था; इसलिये युद्ध में मारा गया । ओ मूर्ख! तुम शकुनि की सलाह मानकर मेरे मांगने पर भी पाण्डवों को उनकी पैतृक सम्पत्ति, उनका अपना राज्य लोभवश नहीं देना चाहते थे । सुदुर्मते! तुमने जब भीमसेन को विष दिया, समस्त पाण्डवों को उनकी माता के साथ लाक्षाग्रह में जला डालने का प्रयत्न किया और लिर्नज ! दुष्टात्मन ! धूतक्रीड़ा के समय भी सभा में रजस्वला द्रौपदी को जब तुम लोग घसीट लाये, तभी तुम वध के योग्य हो गये थे । तुमने धूतक्रीड़ा के जानकार सुबल पुत्र शकुनि के द्वारा उस कला को न जानने वाले धर्मज्ञ युधिष्ठिर को, छल से पराजित किया था, उसी पाप से तुम रणभूमि में मारे गये हो । जब पाण्डव शिकार के लिये तृणविन्दु के आश्रम पर चले गये थे, उस समय पापी जयद्रथ ने बन के भीतर द्रौपदी को जो क्लेश पहुंचाया और पापत्मन! तुम्हारे ही अपराध से बहुत-से योद्धाओं ने मिलकर युद्ध स्थल में जो अकेले बालक अभिमन्यु का वध किया था, इन्हीं सब कारणों से आज तुम भी रण भूमि में मारे गये हो । भीष्म पाण्डवों के अनर्थ की इच्छा रखकर समर भूमि में पराक्रम प्रकट कर रहे थे। उस समय अपने मित्रों के हित के लिये शिखण्डी ने जो उनका वध किया है, वह कोई दोष या अपराध की बात नहीं है। आचार्य द्रोण तुम्हारा प्रिय करने की इच्छा से अपने धर्म को पीछे करके असाधु पुरूषों के मार्ग पर चल रहे थे; अतः युद्धस्थल में धृष्टद्युम्न ने उनका वध किया है।। विद्वान सात्वतवंशी सात्यकि ने अपनी सच्ची प्रतिज्ञा का पालन करने की इच्छा से समरांगण में अपने शत्रु महारथी भूरिश्रवा का वध किया था। राजन ! समर भूमि में युद्ध करते हुए पुरूष सिंह अर्जुन कभी किसी प्रकार भी कोई निन्दित कार्य नहीं करते हैं ! । दुर्मते! अर्जुन ने वीरोचित सदाचार का विचार करके बहुत-से छिद्र (प्रहार करने के अवसर) पाकर भी युद्ध में कर्ण का वध नहीं किया है; अतः तुम उनके विषय में ऐसी बात न कहो। देवताओं का मत जानकर उनका प्रिय और हित करने की इच्छा से मैंने अर्जुन पर महानागशास्त्र का प्रहार नहीं होने दिया। उसे वि़फलकर दिया। तुम भीष्म, कर्ण, द्रोण, अश्वत्थामा तथा कृपाचार्य विराट नगर में अर्जुन की दयालुता से ही जीवित बच गये। याद करो, अर्जुन के उस पराक्रम को; जो उन्होंने तुम्हारे लिये उन दिनों गन्धर्वों पर प्रकट किया था। गान्धारीनन्दन! पाण्डवों ने यहां तुम्हारे साथ जो बर्ताव किया है, उसमें कौन सा अधर्म है । शत्रुओं को संताप देने वाले वीर पाण्डवों ने अपने बाहुबल का आश्रय लेकर क्षत्रिय-धर्म के अनुसार विजय पायी है। तुम पापी हो, इसीलिये मारे गये हो । तुम जिन्हें हमारे किये हुए अनुचित कार्य बता रहे हो, वे सब तुम्हारे महान दोष से ही किये गये हैं ।
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