महाभारत वन पर्व अध्याय 190 श्लोक 25-46

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नवत्यधिकशततम (190) अध्‍याय: वन पर्व (मार्कण्डेयसमस्या पर्व)

महाभारत: वन पर्व: नवत्यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 25-46 का हिन्दी अनुवाद

कलियुगके अन्तिम भागमें पिता पुत्रकी और पुत्र पिताकी शया आदिका उपभोग करने लगेंगे। उस समय त्याज्य ( अभक्ष्य ) पदार्थ भी भोजनके योग्य समझे जायंगे। ब्राह्मणलोग व्रत और नियमोंका पालन तो करेंगे नहीं, उलटे वेदोंकी निन्दा करने लग जायंगे। कोरे तर्कवादसे मोहित होकर वे यज्ञ और होम छोड़ बैठेंगे। वे केवल तर्कवादसे मोहित होकर नीच-से-नीच कर्म करनेके लिये प्रयत्नशील रहेंगे। मनुष्य नीची भूमिमें ( अर्थात् गायोंके जल पीने और चरनेकी जगहमें ) खेती करेंगे। दूध देनेवाली गायोंको भी बोझ ढोनेके काममें लगा देंगे और सालभरके बछड़ोंको भी हलमें जोतेंगे। पुत्र पिताका और पुत्रका वध करके भी उद्धिग्र नहीं होंगे। अपनी प्रशंसाके लिये लोग बड़ी-बड़ी बातें बनायेंगे, किंतु समाजमें उनकी निन्दा नहीं होगी। सारा संसार म्लेच्छोंकी भांति शुभ कर्म और यज्ञ-यागादि छोड़ देगा तथा आनन्दशून्य और उत्सवरहित हो जायगा। लोग प्रायः दीनों, असहायों तथा विधवाओंका भी धन हड़प् लेंगे। उनके शारीरिक बल और पराक्रम क्षीण हो जायंगे। वे उदण्ड होकर लोभ और मोहमें डूबे रहेंगे। वैसे ही लोगोंकी चर्चा करने और उनसे दान लेनेमें प्रसन्नताका अनुभव करेंगे। कपटपूर्ण आचारको अपनाकर वे दुष्टोंके दिये हुए दानको भी ग्रहण कर लेंगे। कुन्तीनन्दन! पापबुद्धि राजा एक दूसरेको युद्धके लिये ललकारते हुए परस्पर एक दूसरेके प्राण लेनेको उतारू रहेंगे और मूर्ख होते हुए अपनेको पण्डित मानेंगे। इस प्रकार युगान्तकालके सभी क्षत्रिय जगत् के लिये कांटे बन जायंगे। कलियुगकी समाप्तिके समय वे प्रजाकी रक्षा तो करेंगे नहीं, उनसे रूपये ऐंठनेके लिये लोभ अधिक रखेंगे। सदा मान और अहंकारके मदसे चूर रहेंगे। वे केवल प्रजाको दण्ड देनेके कार्यमें ही रूचि रखेंगे। भारत! लोग इतने निर्दयी हो जायंगे कि सज्जन पुरूषोंपर भी बार-बार आक्रमण करके उनके धन और स्त्रियोंका बलपूर्वक उपभोग करेंगे तथा उनके रोने-बिलखनेपर भी दया नहीं करेंगे। कलियुगका अन्त आनेपर न तो कोई किसीसे कन्याकी वाचना करेगा और न कोई कन्यादान ही करेगा। उस समयके वर-कन्या स्वयं ही एक दूसरेको चुन लेंगे। कलियुगकी समाप्ति के समय असंतोषी तथा मूढ़-चित्त राजा भी सब तरहके उपायोंसे दूसरोंके धनका अपहरण करेंगे। उस समय सारा जगत् म्लेच्छ हो जायगा-इसमें संशय नहीं। एक हाथ दूसरे हाथको लूटेगा-सगा भाई भी भाईके धनको हड़प लेगा। अपनेको पण्डित माननेवाले मनुष्य संसारमें सत्यको मिटा देंगे। बूढ़ोंकी बुद्धि बालकों-जैसी होगी और बालकोंकी बूढ़ों-जैसी। युगान्तकाल उपस्थित होनेपर कायर अपनेको शूर-वीर मानेंगे और शूर-वीर कायरोंकी भांति विषादमें डूबे रहेंगे। कोई एक दूसरेका विश्वास नहीं करेंगे। युगके सब लोग लोभ और मोहमें फंसकर भक्ष्याभक्ष्यका विचार किये बिना ही एक साथ सम्मिलित होकर भोजन करने लगेंगे। अधर्म बढ़ेगा और धर्म विदा हो जायगा। नरेश्वर! ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्योंका नाम ही नहीं रह जायगा। युगान्तकालमें सारा विश्व एक वर्ण, एक जातिका हो जायगा। युगक्षय-कालमें पिता पुत्रके अपराधको क्षमा नहीं करेंगे और पुत्र भी पिताजी बात नहीं सहेगा। स्त्रियां अपने पतियोंकी सेवा छोड़ देंगी। युगान्तकाल आनेपर ( लोग ) उन प्रदेशोंमें चले जायंगे जहां जौ और गेहूं आदि अनाज अधिक पैदा होते हैं ( चाहे वह देश निषिद्ध ही क्यों न हो )। महाराज! युगान्तकाल आनेपर पुरूष और स्त्रियां स्वेच्छाचारी होकर एक दूसरेके कार्य और विचारको नहीं सहेंगे। युधिष्ठिर! उस समय सारा जगत् म्लेच्छ हो जायगा। मनुष्य श्राद्ध और यश्र-कर्मोंद्वारा पितरों और देवताओं संतुष्ट नहीं करेंगे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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