महाभारत विराट पर्व अध्याय 9 श्लोक 32-37

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०९:१३, १८ अगस्त २०१५ का अवतरण ('==नवम (9) अध्‍याय: विराट पर्व (पाण्डवप्रवेश पर्व)== <div style="tex...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

नवम (9) अध्‍याय: विराट पर्व (पाण्डवप्रवेश पर्व)

महाभारत: विराट पर्व: अष्टम अध्‍याय: श्लोक 32-37 का हिन्दी अनुवाद

जो मुझे जूँठा अन्न नहीं देता और मुझसे अपने पै नहीं धुलवाता, उसके व्यवहार से मेरे पति गन्धर्वलोग प्रसन्न रहते हैं। परंतु जो पुरुष मुझे अन्य प्राकृत स्त्रियों के समान समझकर (बलपूर्वक) प्राप्त करना चाहता है, उसका उसी रात में परलोकवास हो जाता है। अतः कल्याणि ! मुझे कोई भी सतीत्व से विचलित नहीं कर सकता। शुचिस्मिते ! यद्यपि मेरे पति गन्धर्वगण इस समय दुःख में पड़े हैं; तथापि वे बड़े बलवान् हैं और गुप्तरूप से मेरी रक्षा करते रहते हैं। सुदेष्णा ने कहा- आनन्ददायिनी सुन्दरी ! यदि (तुम्हारा शील स्वभाव) ऐसा है, तो मैं जैसी तुम्हारी इच्छा है, उसके अनुसार तुम्हें अवश्य अपने घर में ठहराऊँगी। तुम्हें किसी प्रकार पैर या जूँठन नहीं छूने पड़ेंगे। वैशम्पायनजी कहते हैं- विराट की रानी ने जब इस प्रकार आश्वासन दिया, तब पातिव्रत्व धर्म का पालन करने वाली सती द्रौपदी उस नगर में रहने लगी। जनमेजय ! वहाँ दूसरा कोई मनुष्य उसका वास्तविक परिचय न पा सका।

इस प्रकार श्रीमहाभारत विराट पर्व के अन्तर्गत पाण्डवप्रवेश पर्व में द्रौपदीप्रवेश विषयक नवाँ अध्याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।