महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 85 श्लोक 28-40
पञ्चाशीतितम (85) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
वह महाधनुर्धर वीर अपने बाणो द्वारा शल्य के अस्त्र का निवारण करता हुआ वहीं डटा रहा। फिर शिखण्डीध ने शल्य के अस्त्र का प्रतिघात करने वाले अन्य भयंकर वारूणास्त्र को हाथ में लिया। आकाश में खडे़ हुए देवताओं तथा रणक्षेत्र मे आये हुए राजाओं ने देखा, शिखण्डीा के दिव्यास्त्र से शल्य का अस्त्र विदीर्ण हो रहा है। राजन्! महात्मा एवं वीर भीष्मह युद्धस्थल में अजमीढ़ कुलनन्दन पाण्डुशपुत्र राजा युधिष्ठिर के विचित्र धनुष और ध्वतज को काटकर गर्जना करने लगे। तब धनुष-बाण फेंककर भय से दबे हुए युधिष्ठिर को देखकर भीमसेन गदा लेकर युद्ध में पैदल ही राजा जयद्रथ पर टूट पडे़। इस प्रकार सहसा हाथ में गदा लिये भीमसेन को वेगपूर्वक आते देख जयद्रथ ने यमदण्डर के समान भयंकर पांच सौ तीखे बाणों द्वारा सब ओर से उन्हें घायल कर दिया। वेगशाली भीमसेन उसके बाणों की कोई परवा न करते हुए मन-ही-मन क्रोध से जल उठे। तत्पश्चालत् उन्होंने समरभूमि में सिन्धुराज के कबूतर के समान रंग वाले घोड़ों को मार ढाला। यह देखकर आपका अनुपम प्रभावशाली पुत्र देवराज सदृश दुर्योधन भीमसेन को मारने के लिये हथियार उठाये बड़ी उतावली के साथ रथ के द्वारा वहां आ पहुंचा।
तब भीमसेन भी सहसा सिंहनाद करके गदा द्वारा गर्जन-तर्जन करते हुए जयद्रथ की ओर बढे़। घोड़ों के मारे जाने पर जयद्रथ उस रथज को छोड़कर जहां शकुनि, सेवकवृन्द तथा छोटे भाइयों सहित कुरूराज दुर्योधन था, वहीं चला गया। भीमसेन को देखकर जयद्रथ का मन किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया था। वह भय से पीड़ित हो रहा था । भीमसेन भी शकुनि और भाइयों सहित आपके पुत्र दुर्योधना को देखकर रोष में भर गये और सहसा गर्जना करके गदा द्वारा जयद्रथ को मार डालने की इच्छा से आगे बढे़। यमदण्डथ के समान भयंकर उस गदा को उठी हुई देख समस्त कौरव आपके पुत्र को वहीं छोड़कर गदा के उग्र आघात से बचने के लिये चारों ओर भाग गये। भारत! मोह में डालने वाले उस अत्यन्त दारूण एवं भयंकर जनसंहार में उस महागदा को आती देख केवल चित्रसेन का चित्त किंकर्तव्य-विमूढ़ नहीं हुआ था।
राजन्! वहि अपने रथ को छोड़कर हाथ में बहुत बड़ी ढाल और तलवार ले पर्वत के शिखर से सिंह की भांति कूद पड़ा और पैदल ही विचरता हुआ युद्धस्थल के दूसरे प्रदेश में चला गया। वह गदा से चित्रसेन के विचित्र रथ पर पहुंचकर उसे घोडे़ और सारथि सहित चूर-चूर करके आकाश में टूटकर पृथ्वीस पर गिरने वाली जलती हुई विशाल उल्का के समान रणभूमि में जा गिरी। भारत! इस समय आपके समस्त सैनिक चित्रसेन का वह महान् आश्र्वर्यमय कार्य देखकर बडे़ प्रसन्न हुए। वे सभी सब ओर से एक साथ आपके पुत्रों के शौर्य की प्रशंसा और गर्जना करने लगे|
« पीछे | आगे » |