महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 332 श्लोक 22-31
द्वात्रिंशदधिकत्रिशततम (332) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
ब्रह्मर्षि व्यासजी के पुत्र की यह उत्तम देख उन दोनों को बड़ा विस्मय हुआ। वे आपस में कहने लगीं, ‘अहो ! इस वेदाभ्यासपरायण ब्राह्मण की बुद्धि में कितनी अद्भुत एकाग्रता है ? पिता की सेवा से थोड़े ही समय में उत्तम बुद्धि पाकर यह चन्द्रमा के समान आकाश में विचर रहा है। ‘यह बड़ा ही तपस्वी और पितृभक्त था और अपने पिता का बहुत ही प्यारा बेटा था। उनका मन सदा इसी में लगा रहता था; फिर भी उन्होंने इसे जाने की आज्ञा कैसे दे दी ? उर्वशी की बात सुनकर परम धर्मज्ञ शुकदेवजी ने सम्पूर्ण दिशाओं की ओर देखा। उस समय उनका चित्त उसकी बातों की ओर चला गया था। आकाश, पर्वत, वन और काननों सहित पृथ्वी एवं सरोवरों और सरिताओं की ओर भी उन्होंने दृष्टि डाली। उस समय इन सबकी अधिष्ठात्री देवियों ने सब ओर से बड़े आदर के साथ द्वैपायनकुमार शुकदेवजी को देखा। वे सब-की-सब अंजलि बाँधे खड़ी थीं। तब परम धर्मज्ञ शुकदेवजी ने उन सबसे कहा- ‘देवियों ! यदि मेरे पिताजी मेरा नाम लेकर पुकारते हुए इधर आ निकलें तो आप सब लोग सावधान होकर मेरी ओर से उन्हें उत्तर देना। आप लोगों का मुझपर बड़ा स्नेह है; इसलिये आप सब मेरी इतनी सी बात मान लेना’। शुकदेवजी की यह बात सुनकर काननों सहित सम्पूर्ण दिशाओं, समुद्रों, नदियों, पर्वतों और पर्वतों की अधिष्ठात्री
देवियों ने सब ओर से यह उत्तर दिया- ‘ब्रह्मन् ! आप जैसी आज्ञा देते हैं, निश्चय ही वैसा ही होगा। जब महर्षि व्यास आपको पुकारेंगे, तब हम सब लोग उन्हें उत्तर देंगी’।
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