महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 59 श्लोक 12-25
एकोनषष्टितम (59) अध्याय: द्रोण पर्व ( अभिमन्युपर्व )
दशरथ नन्दन श्रीराम (अपने महान् तेज के कारण ) सम्पूर्ण प्राणियों से बढकर शोभा पाते थे । श्रीराम के राज्य शासन करते समय ऋषि, देवता और मनुष्य सभी एक साथ इस पृथ्वी पर निवास करते थे । उस सम उनके राज्य शासनकाल में प्राणियों के प्राण, अपान और समान आदि प्राणवायु का क्षय नहीं होता था, इस नियम में कोई हेर-फेर नहीं था । (यज्ञों अथवा अग्निहोत्र-ग्रहों में) सब ओर अग्निदेव प्रज्वलित होते रहते थे । उन दिनों किसी प्रकार का अनर्थ नहीं होता था । सारी प्रजा दीर्घायु होती थी। किसी युवक की मृत्यु नहीं हुआ करती थी । चारों वेदों के स्वाध्याय से प्रसन्न हुए देवता तथा पितृगण नाना प्रकार के हव्य और कव्य प्राप्त करते थे। सब ओर इष्ट (यज्ञयागादि) और पूर्त (वापी, कूप, तडाग और वृक्षारोपण आदि) का अनुष्ठान होता रहता था। श्रीरामचन्द्रजी के राज्य में किसी भी देश में डांस और मच्छरों का भय नहीं था । सांप और बिच्छू नष्ट हो गये थे। जल में पडने पर भी किसी प्राणी की मृत्यु नहीं होती थी । चिता की अग्नि ने किसी भी मनुष्य को असमय में नहीं जलाया था (किसी की अकाल मृत्यु नहीं हुई थी) । उन दिनों लोग अधर्म में रुचि रखने वाले, लोभी और मूर्ख नहीं होते थे । उस समय सभी वर्ण के लोग अपने लिये शास्त्रविहित यज्ञ-यागादि कर्मों का अनुष्ठान करते थे । जनस्थान में राक्षसों ने जो पितरों और देवताओं की पूजा अर्चा नष्ट कर दी थी, उसे भगवान् श्रीराम ने राक्षसों को मारकर पुन: प्रचलित किया और पितरों को श्राद्ध का तथा देवताओं को यज्ञ का भाग दिया । श्रीराम के राज्यकाल में एक-एक मनुष्य के हजार-हजार पुत्र होते थे और उनकी आयु भी एक-एक सहस्त्र वर्षों की होती थी । बडों को अपने छोटों का श्राद्ध नहीं करना पडता था । श्रीराम के राज्य में कहीं भी चोर, नाना प्रकार के रोग और भांति-भांति के उपद्रव नहीं थे । दुर्भिक्ष, व्याधि और अनावृष्टि का भय भी कहीं नहीं थे । सारा जगत् अत्यन्त सुख से सम्पन्न और प्रसन्न ही दिखायी देता था । इस प्रकार श्रीराम के राज्य करते समय सब लोग बहुत सुखी थे । भगवान श्रीराम की श्यामसुन्दर छबि, तरुण अवस्था और कुछ-कुछ अरुणाई लिये बडी-बडी आंखें थीं । उनकी चाल मतवाले हाथी-जैसी थी, भुजाएं सुन्दर और घुटनों तक लंबी थी । कंधे सिंह के समान थे । उनमें महान बल था । उनकी कान्ति समस्त प्राणियों के मन को मोह लेने वाली थी । उन्होंने ग्यारह हजार वर्षों तक राज्य किया था । श्रीरामचन्द्र जी के राज्य शासन काल में समस्त प्रजाओं में ‘राम, राम, राम’ यही चर्चा होती थी । श्रीराम के कारण सारा जगत ही राममय हो रहा था । फिर समय अनुसार अपने और भाइयों के अंशभूत दो-दो पुत्रों द्वारा आठ प्रकार के राजवंश की स्थापना करके उन्होंने चारों वर्णों की प्रजा को अपने धाम में भेजकर स्वयं ही संदेह परम धाम को गमन किया। श्वैत्य सृंजय ! ये श्रीरामचन्द्र जी धर्म, ज्ञान, वैराग्य और ऐश्वर्य चारों बातों में तुमसे बहुत बढे-चढे थे और तुम्हारे पुत्र से भी अधिक पुण्यात्मा थे । जब वे भी यहां नहीं रह सके, तब दूसरों की तो बात ही क्या है! अत: तुम या एवं दान-दक्षिणा से रहित अपने पुत्र के लिये शोक न करो । नारदजी ने राजा सृंजय से यही बात कही ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोण के अन्तर्गत अभिमन्यु वध पर्व में षोडशराजकीयोपाख्यान विषयक उनसठ वां अध्याय पूरा हुआ ।
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