महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 107 श्लोक 37-55

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सप्ताधिकशततम (107) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: सप्ताधिकशततम अध्याय: श्लोक 37-55 का हिन्दी अनुवाद

अर्जुन ने जिस बात के लिये प्रतिज्ञा की हो, उनकी पूर्ति करना मेरा कर्तव्य है, इसमें संशय नहीं है अथवा रणक्षेत्र में अर्जुन के लिये यह बहुत थोड़ा भार है। वे शत्रुनगरी पर विजय पाने वाले भीष्म को युद्ध में अवश्य मार डालेंगे। कुन्तीपुत्र अर्जुन उद्यत हो जाये तो युद्ध में असम्भव को भी संभव कर सकते है। नरेश्वर ! दैत्यों और दानवों सहित सम्पूर्ण देवताओं को भी अर्जुन युद्ध में मार सकते है; फिर भीष्म को मारना कौन बडी बात है। महापराक्रमी शान्तनुनन्दन भीष्त तो हमारे विपरीत पक्ष का आश्रय लेने वाले और बलहीन हैं। इनके जीवन के दिन अब बहुत थोड़े रह गये हैं, तथापि यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि वे अपने कर्तव्य को नहीं समझ रहे हैं। युधिष्ठिर ने कहा-महाबाहो ! माधव ! आप जैैसा कहते है, ठीक ऐसी ही बात है। ये समस्त कौरव आपका वेग धारण करने में समर्थ नहीं हैं। पुरूष सिंह! जिसके पक्ष में आप खड़े है, वह मैं यह सब अभीष्ट मनोरथ अवष्य पूर्ण कर लूँगा। विजयी वीरों में श्रेष्ठ गोविन्द ! आपको अपना रक्षक पाकर मैं युद्ध में इन्द्र सहित सम्पूर्ण देवताओ को भी जीत सकता हूँ, फिर महारथी भीष्म पर विजय पाना कौन बड़ी बात है। माधव ! परन्तु मैं अपनी गुरूत्ता का प्रभाव डालकर आपको असत्यवादी नहीं बना सकता।
आप युद्ध किये बिना ही पूर्वोक्त सहायता करते रहिये। मेरी भीष्म जी के साथ एक शर्त हो चुकी है। उन्होने कहा है कि ‘मैं युद्ध में तुम्हारे हित के लिये सलाह दे सकता हूँ, परन्तु तुम्हारी ओर से किसी प्रकार युद्ध नहीं करूँगा। युद्ध तो मैं केवल दुर्योधन के लिये ही करूँगा। प्रभो! यह बिल्कुल सच्ची बात हैं। अतः माधव ! भीष्म जी मुझे राज्य और मन्त्र ( हितकर सलाह ) दोनोें देंगे। इसलिये मधुसूधन ! हम सब लोग पुनः आपके साथ देवव्रत भीष्म केे पास उन्ही से उनके वध का उपाय पूछने चलें। वृष्णिनन्दन ! हम सब लोग शीघ्र ही एक साथ कुरूवंशी नरश्रेष्ठ भीष्म के पास चलें और उनसे सलाह लें। जनार्दन ! पूछने पर वे हमें सत्य और हितकर बात बतायेंगे। श्रीकृष्ण ! वे जैसा कहेंगे, युद्ध में वैसा ही करूँगा।
दृढतापूर्वक व्रत का पालन करने वाले भीष्म जी हमारे लिये विजय और सलाह के भी दाता हो सकते है। बाल्यावस्था में जब हम पितृहीन हो गये थे, उस समय उन्होंने ही हमारा पालन पोषण किया था। माधव ! यद्यपि वे हमारे पिता के भी पिता और प्रिय है, तो भी उन बूढ़े पितामह भीष्म को भी मैं मारना चाहता हूँ। क्षत्रिय की इस जीविका को धिक्कार है। संजय कहते है- महाराज ! तब भगवान श्रीकृष्ण ने कुरूनन्दन युधिष्ठिर से कहा- महामते राजेन्द्र! टापका कथन मुझे ठीक जान पड़ता है। देवव्रत भीष्म पुण्यात्मा पुरूष है। वे दृष्टिपात मात्र से सबको दग्ध कर सकते है; अतः गंगनन्दन भीष्म से उनके वध का उपाय पूछने के लिये आप अवश्य उनके पास चले। विशेषतः आपके पूछने पर वे अवश्य सच्ची बात बतायेंगे। अतः हम सब लोग मिलकर कुरूकुल के वृद्ध पितामह शान्तनुनन्दन भीष्म से अभीष्ट प्रश्न पूछने के लिये साथ साथ वहाँ चले और भारत ! चलकर उनसे हितकारक मन्त्रणा पूछें। वे आपको ऐसी मन्त्रणा देेंगे, जिससे हमलोग शत्रुओं के साथ युद्ध करेंगे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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