महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 111 श्लोक 21-40

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दशाधिकशततम (111) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: दशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 21-40 का हिन्दी अनुवाद

जब शत्रुसूदन शिखण्डी गंगानन्दन भीष्म पर धावा किया था, उस समय उन दोनों ( अभिमन्यु और सुदक्षिण ) के संघर्ष में वहाँ बड़ा भारी युद्ध आरम्भ हो गया। बूढे राजा महारथी विराट और दु्रपद दुर्योधन की उस विशाल सेना को रोकते हुए अत्यन्त क्रोध में भरकर युद्धस्थल में भीष्म पर चढ आये।। तब रथियों में श्रेष्ठ अश्वत्थामा रणभूमि में कुपित होकर आया। भारत ! फिर अश्वत्थामा का विराट और द्रुपद के साथ भारी युद्ध छिड़ गया। शत्रुओं को संताप देने वाले नरेश ! राजा विराट ने संग्राम में शोभा पाने वाले प्रयत्नशील एवं महाधनुर्धर अश्वत्थामा को भल्ल नामक दस बाणों में घायल किया। उस सम द्रुपद ने भी तीन तीखे बाणों द्वारा अश्वत्थामा को घायल कर दिया। इस प्रकार प्रहार करते हुए उन दोनों महाबली नरेशों को अश्वत्थामा ने अनेक बाणों द्वारा बींध डाला। विराट और दु्रपद दोनों वीर भीष्म का वध करने के लिए उद्यत थे।
राजन् ! वहाँ उन दोनों बूढ़े नरेशों का हमने अद्भूत एवं महान पराक्रम यह देखा कि वे युद्ध में अश्वत्थामा के भयंकर बाणों का निवारण करते जा रहे थे। इसी प्रकार भीष्म पर चढ़ाई करने वाले सहदेव को शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य ने सामने आकर रोका, मानो वन में किसी मतवाले हाथी पर मदोन्मत्त गजराज ने आक्रमण किया हो। शूरवीर कृपाचार्य ने समरभूमि में महारथी माद्रीकुमार सहदेव को सुवर्णभूषित सत्तर बाणों से तुरंत घायल कर दिया। तब माद्रीकुमार सहदेव ने भी अपने सायको द्वारा उनके धनुष के दो टुकडे कर दिये और धनुष कट जाने पर उन्हें नौ बाणों से घायल कर दिया।
तदनन्तर भीष्म के जीवन की रक्षा चाहने वाले कृपाचार्य ने समरांगण में भार सहन करने में समर्थ दूसरा धनुष लेकर अत्यन्त हर्ष के साथ सहदेव की छाती में क्रोधपूर्वक दस तीखे बाण मारे। राजन् ! इसी प्रकार पाण्डुकुमार सहदेव ने भी कुपित हो भीष्म के वध की इच्छा से अमर्षशील कृपाचार्य की छाती में अपने बाणों द्वारा प्रहार किया। उन दोनों का वह युद्व अत्यन्त घोर एवं भयंकर हो चला।
दूसरी ओर क्रोध में भरे हुए शत्रुसंतापी विकर्ण ने युद्ध के मैदान में महाबली भीष्म की रक्षा में तत्पर हो साठ बाणों द्वारा नकुल को घायल कर दिया। आपके बुद्विमान पुत्र विकर्ण द्वारा अत्यन्त घायल होकर नकुल ने भी सतहत्तर बाणों से विकर्ण को क्षत-विक्षत कर दिया। जैसे गोशाला में दो साँड आपस में लडते हो, उसी प्रकार शत्रुओं को संताप देने वाले पुरूषसिंह वीर विकर्ण और नकुल भीष्म की रक्षा के लिये एक दूसरे पर घातक प्रहार कर रहे थे। उसी समय पराक्रमी दुर्मुख ने समरभूमि में भीष्म की रक्षा के लिये राक्षस घटोत्कच पर आक्रमण किया, जो युद्ध के मैदान में आपकी सेना का संहार करता हुआ आगे बढ रहा था। राजन् ! उस समय शत्रुओं को संताप देने वाले दुर्मुख को क्रोध में भरे हुए हिडिम्बाकुमारी ने झुकी हुई गाँठवाले बाण से उसकी छाती में चोट पहुँचायी। तब वीर दुर्मुख ने हर्ष पूर्वक गर्जना करते हुए अपने तीखी नोकवाले बाणों द्धारा भीमसेन के पुत्र घटोत्कच को युद्ध के मुहाने पर साठ बाणों से बींध डाला।
इसी प्रकार भीष्म के वध की इच्छा से आते हुए रथियो में श्रेष्ठ धृष्टधुम्न को महारथी कृतवर्मा ने रोक दिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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