महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 7 श्लोक 1-21

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०६:४०, २५ अगस्त २०१५ का अवतरण ('==सप्‍तम(7) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)== <div style="...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

सप्‍तम(7) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: ।। सप्‍तम अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद

द्रोणाचार्य का सेनापति के पद पर अभिषेक, कौरव-पाण्‍डव-सेनाओं का युद्ध और द्रोण का पराक्रम

द्रोणाचार्य ने कहा – राजन ! मै छहों अगोंसहित वेद, मनुजी का कहा हुआ अर्थशास्‍त्र, भगवान्‍ शंकर की दी हुई बाण-विधा और अनेक प्रकारके अस्‍त्र-शस्‍त्र भी जानता हूं । विजयकी अभिलाषा रखनेवाले तुमलोगों ने मुझमें जो-जो गुण बताये हैं, उन सबको प्राप्‍त करने की इच्‍छा से मैं पाण्‍डवों के साथ युद्ध करूँगा । राजन ! मैं द्रुपदकुमार धृष्‍टघुम्‍न को युद्धस्‍थल में किसी प्रकार भी नहीं मारूँगा; क्‍योंकि वह पुरूषप्रवर धृष्‍टघुम्‍न मेरे ही वध के लिये उत्‍पन्‍न हुआ है। मैं समस्‍त सोमकों का संहार करते हुए पाण्‍डव-सेनाओं के साथ युद्ध करूँगा; परंतु पाण्‍डव लोग युद्धमें प्रसन्‍नतापूर्वक मेरा सामना नहीं करेंगे । संजय कहते हैं- राजन ! इस प्रकार आचार्य द्रोण की अनुमति मिल जानेपर आपके पुत्र दुर्योधन ने उन्‍हें शास्‍त्रीय विधि के अनुसार सेनापति के पदपर अभिषिक्‍त किया । तदनन्‍तर जैसे पूर्वकाल में इन्‍द्र आदि देवताओं ने स्‍क्रन्‍द को सेनापति के पदपर अभिषिक्‍त किया था, उसी प्रकार दुर्योधन आदि राजाओं ने भी द्रोणाचार्य का अभिषिक्‍त किया । उस समय वाद्यो के घोष तथा शंखों की गम्‍भीर ध्‍वनि के साथ द्रोणाचार्य के सेनापति बना लिये जाने पर सबलोगों के ह्रदय में महान हर्ष प्रकट हुआ पुण्‍याहवाचन,स्‍वस्तिवाचन, सूत, मागध और वन्‍दीजनों के स्‍तोत्र, गीत तथा श्रेष्‍ठ ब्राह्माणों के जय-जयकार के शब्‍द से एवं नाचनेवाली स्त्रियों के नृत्‍य से दोणाचार्य का विधिवत् सत्‍कार करके कौरवोंने यह मान लिया कि अब पाण्‍डव पराजित हो गये । राजन ! महारथी द्रोणाचार्य सेनापति का पद पाकर सेना की व्‍यूह रचना करके आपके पुत्रोंको साथ ले युद्ध के लिये उत्‍सुक हो आगे बढ़े । सिन्‍धुराज जयद्रथ, कलिगनरेश और आपके पुत्र विकर्ण- ये तीनों उनके दक्षिण पार्श्‍वका आश्रय ले कवच बॉधकर खड़े हुए ।गान्‍धार देशके प्रधान-प्रधान घुड़सवारों के साथ, जो चमकीले प्रासों द्वारा युद्ध करने वाले थे, गान्‍धरराज शकुनि उन दक्षिण पार्श्‍व के योद्धाओं का प्रपक्ष (सहायक) बनकर चला गया । कृपाचार्य, कृतवर्मा, चित्रसेन, विविंशति और दु:शासन आदि वीर योद्धा बड़ी सावधानी के साथ द्रोणाचार्य के वाम पार्श्‍वकी रक्षा करने लगे । उनके सहायक या प्रपक्ष थे सुदक्षिण आदि काम्‍बोज देशीय सैनिक । ये सब लोग शको और यवनों के साथ महान वेगशाली घोड़ोपर सवार हो युद्धके लिये आगे बढ़े । मद्र, त्रिगर्त, अम्‍बष्‍ठ, प्रतीच्‍य, उदीच्‍य मालव, शिबि, शूरसेन, शूद्र, मलद, सौवीर, कितव, प्राच्‍य तथा दाक्षिणात्‍य वीर-ये सबके सब आपके पुत्र दुर्योधन को आगे करके सूतपुत्र कर्णके पृष्‍ठभागमें रहकर अपनी सेनाओं को हर्ष प्रदान करते हुए आपके पुत्रोंके साथ चले । समस्‍त योद्धाओं में श्रेष्‍ठ विकर्तनपुत्र कर्ण सारी सेनाओंमें नूतन शक्ति और उत्‍साह का संचार करता हुआ सम्‍पूर्ण धनुर्धरों के आगे-आगे चला । उसका अत्‍यन्‍त कान्तिमान् विशाल ध्‍वज बहुत ऊँचा था । उसमें हाथी को बॉधने वाली साँकल का चिन्‍ह सुशोभित था । वह ध्‍वज अपने सैनिकों का हर्ष बढ़ाता हुआ सूर्य के समान देदीप्‍यमान हो रहा था । कर्णको देखकर किसी को भी भीष्‍मजीके मारे जाने का दु:ख नहीं रह गया । कौरवों सहित सब राजा शोक रहित हो गये । हर्षमें भरे हुए बहुत से योद्धा वहां वेगपूर्वक बोल उठे- इस रणक्षेत्र में कर्णको उपस्थित देख पाण्‍डवलोग ठहर नहीं सकेंगे । क्‍योंकि कर्ण समरागण में इन्‍द्र के सहित देवताओं को भी जीतने में समर्थ है । फिर, जो बल और पराक्रममें कर्ण की अपेक्षा निम्‍न श्रेणी के हैं, उन पाण्‍डवों को युद्ध में पराजित करना उसके लिये कौन बड़ी बात है ।

'

« पीछे आगे »


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।